हमारे हिन्दू समाज में जुलाई का महिना पार होते ही मानों त्यौहारों की बौछार लग जाती है। हर एक महिना किसी ना किसी प्रकार के त्यौहार से घिरा होता है अभी हाल ही हुए गणेश विसर्जन के बाद से नवरात्र के आने की तैयारियां बड़े जोर-शोर से होने लगी है। क्योंकि इन नवरात्र में मां भगवती के प्रति आस्था बनाये रखने के लिए हम पूरी श्रृद्धा के साथ नवरात्रों का व्रत रखते है। इन दिनों में व्रत को पूरा करने के लिए विभिन्न तरह के पकवानों के साथ लोग साबूदाना से बने आहार का भी सेवन करते हैं, पर क्या आप जानते है कि अपने व्रत के समय में प्रयोग किए जाने वाला ये आहार आपके धर्म को भ्रष्ट कर रहा है। जिसे हम शाकाहारी मान रहें हैं वो पूर्णतः मांसाहारी होता है। इसके मांसाहारी होने के क्या कारण है आज हम आपको बता रहें हैं। साबूदाना के मांसाहारी होने का सच इसे बनाने वाली प्रक्रिया में छिपा है। अब आप इस विषय में यह सोच रहे होंगे कि प्राकृतिक रूप से मिलनें वाला साबूदाना मांसाहारी कैसे हो सकता है? तो जानें इसके बारें में…
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साबूदाना वनस्पतियों से मिलने वाला एक प्राकृतिक खाद्यपदार्थ है वैसे तो यह पौधा दक्षिण अमेरिकी में पाया जाता है लेकिन इसकी गुणवत्ता के कारण अब ये भारत के आन्ध्रप्रदेश, केरल, तमिलनाडु, और कर्नाटक में भी बड़ी ही तदाद में उगाया जाने लगा है। यह सागो पाम नामक पौधे के तने एवं जड़ों के गूदे से बनाया जाता है। इसके बाद इसे बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों में ले जाकर साबूदाना का आकार दिया जाता है। साबूदाने की ये फैक्ट्रियां तमिलनाडु में स्थित है क्योंकि साबूदाने के पौधों की पैदावार अधिकतर उसी क्षेत्रों में होती है। तमिलनाडु में बड़ी ही मात्रा में सागो पाम के पेड़ असानी के साथ पाए जा सकते हैं।
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इसलिए यह एक ऐसा राज्य है जहां पर बड़ी मात्रा में साबूदाना का निर्माण किया जाता है। लेकिन इस आहार का सबसे बड़ा स्त्रोत होने के बाद भी यह राज्य साबूदाना को नष्ट करने में लगा हुआ है। तमिलनाडु में किसी एक फैक्ट्री में नहीं बल्कि वहां पर जितनी भी मिले है वो सभी एक ही जरिए को अपनाते हुए इसे मांसाहारी बनाने का रूप दे रही है। क्योंकि जब फैक्ट्रियों में सागो पाम के पेड़ों की जड़ों और तनें को काटकर लाया जाता है।
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तो इन्हें वहां से लाने के बाद बड़े-बड़े गड्ढों में दबा दिया जाता है, जिसमें रासायनिक पदार्थ मिलाकर इन जड़ों को सड़ाया और गलाया जाता है। जिससे की इनमें से आसानी से साबूदाना निकाला जा सके। जो गड्ढे यहां पर कटे हुए पेड़ों के लिए बनाये जाते है वहां पर बड़ी-बड़ी लाइट्स को भी लगाया जाता है। और इन लाइटों की रोशनी से बिजली वाले कीड़े बड़ी ही मात्रा में इन पर लिपट जाते है। जो बाद में इन्हीं गड्ढों में गिर जाते है। इसके अलावा पेड़ों के सड़नें से मिट्टी में कई तरह के कीड़े पड़ने लगते है जो साबूदाना के अंदर चले जाते है। कुछ समय के बाद जब साबूदाना उस गड्ढें में से निकालने लायक बन जाता है तो वहां के मजदूर बिना किसी सफाई के उन्हें साबूदाना बनाने वाली मशीन में डाल देते है और उसके साथ ये कीड़े भी पिस कर आटे का रूप ले लेते है। फिर इस आटे को साबूदाना का रूप देने के लिए मशीन पर डाला जाता है और पॉलिश के साथ इसकी सुंदर पैकिंग कर बाजार में उतार दिया जाता है। जिसके चमक और खूशबू से हम इतनें आकर्षित हो जाते है कि यह भूल जाते है कि ये शाकाहारी साबूदाना कितना मांसाहारी है।
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