Home विविध छठा नवरात्र – शक्ति का छठा रूप मां कात्यायनी देवी

छठा नवरात्र – शक्ति का छठा रूप मां कात्यायनी देवी

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नवरात्र के छठवें दिन मां जगदम्बा छठे रूप कात्यायनी देवी की पूजा की जाती है, मां अम्बे का यह रूप लोगों के दुख-दर्द को खत्म करता है। भक्त अपनी आने वाली सभी परेशानियों को खत्म करने के लिए मां के चरणों में जाते हैं और उनसे सुख की कामना करते है। मां अपने भक्तों की हर मुराद को पूरा कर उनको दुखों से मुक्त करती है। बताया जाता है कि कत नामक प्रसिद्ध महर्षि के कुल में ऋषि कात्यायन भगवती मां के सबसे बड़े उपासक थे। उन्होंने मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए कई वर्षों तक घोर तपस्या की थी, जब मां भगवती उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर उनके समक्ष आई, तो उन्होंने अपनी इच्छा जाहिर करते हुए मां भगवती को अपने घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने को कहा। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना सहज ही स्वीकार कर ली और उनके यहां एक पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसके कारण देवी का यह स्वरूप कात्यायनी कहलाया।

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बताया जाता है कि मां भगवती ने धरती पर हो रहे दानव दल के अत्याचारों को खत्म करने के लिए ही इस रूप में जन्म लिया था। उस दौरान दानवों के आंतक से धरती से लेकर स्वर्ग में इंद्र का सिंहासन भी ढोल रहा था। देवी देवता भी दानव के हो रहे अत्याचारों से त्राही-त्राही मचा रहे थें। तब इस शक्ति ने देवी-देवताओं के साथ ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में जन्म लिया। महर्षि कात्यायन ने उनका भरण पोषण किया। इसी देवी ने शुक्ल पक्ष की सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी के इन तीन दिनों में कात्यायन ऋषि की पूजा को ग्रहण किया और दशमी के दिन देवी ने महिषासुर का वध कर, उसका अंत कर दिया। तभी से लेकर आज तक उनकी दिव्य शक्ति स्वरूप का प्रकाश इस धरती पर प्रकाशमान है। इनके शरीर से निकला तेज आज भी सूर्य के समान चारों ओर दमकता रहता है। चार भुजाओं वाली मां जगदम्बा का दाहिना हाथ ऊपर की ओर अभयमुद्रा में और तथा नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में रहता है। बाई ओर के ऊपरवाले हाथ में तलवार तो नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित रहता है। इनका वाहन सिंह है। मां भवानी की पूजा जो भक्त सच्चे मन से करता है। उसके दरबार में जो भी जाता है वह खाली नहीं आता, उसे सब सुख देकर मां उसकी झोली को भर देती है।

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मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जाप करें –

“या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥”

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