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 समाज की हर भ्रान्तियों को तोड़, इस महिला ने किया 4000 शवों का दाह संस्कार

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हमारे देश की बात करें, तो धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के चलते दुनिया में एक अलग पहचान रखता है। और इन्हीं धार्मिक मान्यताओं के कारण ही दूसरे देश के लोग यहां खिंचे चले आते है। पर इसी देश में समाज से बंधें कुछ नियम ऐसे है जिसने आज भी महिलाओं पर तरह-तरह के बंधन हैं और वो उनमें कैद हैं। जिसमें आज भी हमारे देश की महिलाओं को हर चीज से जोड़ना वर्जित माना गया है।

समाज में महिलायें भले ही बराबरी से खड़े होकर पूरा बोझ उठा रहीं हों, पर हर तरह के बंधन या अंकुश लगाकर उनकी ख्वाहिशों को दबा दिया जाता है। फिर चाहे पढ़ाई की बात हो, या फिर नौकरी की। यहां तक कि एक ही कोख से जन्में बच्चों में आपसी लिंग भेद करके हर चीजों को समाज नें बांट दिया है इसलिये आज भी इसी अंतर के चलते लड़कियां अपने ही माता-पिता के अंतिम समय में भी उन्हें कंधा नही दे पाती। पुरुष प्रधान इस समाज की इस परंपरा को अव्यावहारिक परंपरा कहा जाये तो गलत नही होगा।

भले ही देश पहले से अधिक विकसित हो गया हो, पर समाज नें आज भी महिलाओं को हर बात के लिए बंधन में रखा जाता है, और कहने के लिए बराबरी का दर्जा है लेकि कई ऐसे काम हैं जिनसे उन्हें दूर रखने की कोशिश की जाती है, लेकिन समाज में कुछ ऐसी सशक्त महिलायें है जिन्होनें आगे बढ़कर समाज द्वारा बनाए नियमों को चुनौती दी है

देश की महिलाओं

आज हम ऐसी महिला के बारे में बता रहे हैं। जिसनें समाज के नियमों को तोड़ा ही नही है बल्कि उन्हें एक नई दिशा भी दी है।

जयलक्ष्मी नामक यह महिला आंध्र प्रदेश के अनाकापल्ले के शवदाह गृह में रहकर हर शवों का अंतिम संस्कार करने का काम करती हैं चिता के जलने के बाद हर पुरूष अपने घर का रास्ता नाप लेते हैं पर उनके जाने के बाद उन शवों के साथ यही महिला रहती है। चिता की तैयारी से लेकर चिता के बुझ जाने के बाद तक वह उस जगह की सफ़ाई कर अपना कर्तव्य पूरा कर रही हैं।

सभी तरह की भ्रान्तियों को तोड़ जयलक्ष्मी नामक इस महिला ने अब तक एक या दो नहीं पूरे 4000 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार कराया है.

जयलक्ष्मी के पति का देहात 2002 में हो गया था बच्चों के सिर से पिता का साया चले जाने के बाद इन्होनें अपने पति का काम संभाल लिया। हर किसी ने उसे रोकने की कोशिश की पर सबके सामने एक ही जवाब देकर जयलक्ष्मी  ने कहा- कि मेरा काम देखो अगर मैं वो सही से न करूं, तब कहना.

शवों का दाह संस्कार करवाना फिर चाहे मर्द हो, या औरत इतना आसान नहीं है. पर जयलक्ष्मी की हिम्मत देखकर समाज को सबसे अच्छी सीख मिलती है। आज वो समाज एंव हर महिलाओं के लिये एक मिसाल बनकर उभरी हैं। हर शवों के साथ अपने आखों के आंसुओं को रोककर अपने काम को बाखूबी निभा रही है।

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