श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज का त्यौहार पूरे भारत वर्ष में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं का सबसे खास पर्व माना जाता है। क्योंकि इस दिन देवो के देव महादेव का पार्वती के साथ पुनर्मिलन हुआ था और तभी से हर सुहागन महिलाएं अपने पति का साथ जन्म जन्मांतर तक पाने के लिए इस व्रत को रखती है।
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इतना ही नहीं इस व्रत के माध्यम से महिलाएं भगवान शिव- पार्वती के समक्ष अपनी श्रृद्धा को समर्पित करने का प्रयास करती है। इस दिन को छोटी तीज या श्रवण तीज के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार नाग पंचमी आने के दो दिन पहले मनाया जाता है।
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तीज का आगमन सावन में होने वाली भीगी फुहारों से ही शुरू हो जाता है। जिससे चारों ओर हरियाली भी अपने मधुर गान से इस त्यौहार को मनाने के लिए प्रकृति के गले लग जाती है। इस समय बरसात और प्रकृति के मिलने से पूरे वातावरण में मधुर झनकार सी बजने लगती है। इस त्योहार की मधुर बेला के आगमन के समय नव विवाहिता लड़कियों को उनके ससुराल से पीहर बुला लिया जाता है, अपने पीहर आने के बाद महिलाएं गीत गाती हैं, झूला झूलती हैं और नाचती हैं।
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सावन की तीज में महिलाएं को मायके से काफी भेंट व उपहार मिलते है। जिसमें वस्त्र और मिष्ठान के साथ हरी चूड़ियां, मेंहदी एवं अनेक प्रकार की वस्तुएं होती हैं।
व्रत को करने की विधि
हरियाली तीज के दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र को बनाए रखने के लिए निर्जला व्रत धारण कर मां पार्वती की स्तुति करती हैं। प्रत्येक सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर नए वस्त्र पहन कर मां पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। सभी महिलाएं मंदिर में एकत्रित होकर मां पार्वती की बालू से प्रतिमा बनाती हैं और उन्हें सजाकर फल फूल अर्पण कर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है।
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इस पर्व को महिलाएं बड़ी ही खुशी के साथ नाचते-गाते हुए मनाती है।