नवरात्रि, जिसका अर्थ ही होता है नौ रातें। जिसमें इन नौ रात में नौ शक्ति रूपा मां भगवती की पूजा होती है। इस भव्य पर्व को मनाने के लिए प्रत्येक भारतवासी को इसका इतंजार साल भर रहता है। यह हमारी श्रद्धा, तपस्या और अध्यात्म की गंगा में बहने वाला पर्व होता है। जिसमें उपासना करने से मां भगवती सारे दुखों को हर लेती है। नवरात्रि के दौरान की गई फल प्राप्ति की तपस्या, उनके प्रति हमारा समर्पण और हमारे मन की शुद्धता हमें वर्ष भर शक्ति और सफलता के पथ पर आगे बढ़ने की ओर अग्रसर करता है। हिंदू धर्म के अनुसार यह त्यौहार वर्ष में दो बार आता है। एक शरद माह पर तो दूसरा बसंत माह की नवरात्रि दोनों को ही सभी लोग धूमधाम से मनाते हैं।
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पहले दिन शैलपुत्री की पूजा का विधान:
चैत्र मास के इस नवरात्रि में हर दिन हर देवी की पूजा का अपना एक अलग महत्व होता है। इन नौ दिनों में हम हर शक्ति के रूप की पूजा कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते है। पहले दिन में पहली आदिशक्ति शैलपुत्री की पूजा की जाती है। हिमालय पर्वत राज (शैलराज) की पुत्री के रूप में जन्म लेने कारण ये शैलपुत्री के नाम से जानी जाती है। जिस तरह से एक पर्वत हमारी दृढ़ शक्ति, आधार व स्थिरता का प्रतीक है। उसी तरह से मां शैलपुत्री भी हमारे अखंण्ड सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है। जिनके दाहिने हाथ में त्रिशूल तो बाएं हाथ में कमल का पुष्प शोभामान रहता है। इनका वाहन वृषभ है, जिस पर ये विराजती हैं। नवरात्र के इस प्रथम दिन में मां देवी शैलपुत्री का पूजन करने से मूलाधार चक्र’ जागृत होता है और हमारी योग साधना प्रारंभ होती है। जिसमें कई प्रकार की शक्तियां हमें प्राप्त होती हैं।
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शैलपुत्री पूजा विधि
नवरात्र का प्रारभ होने के पहले दिन में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर मां देवी की मूर्ति या फोटों को लगाया जाता है। इसके साथ ही कलश की स्थापना कर पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां दुर्गा की पूजा प्रत्येक श्रद्धालु ममतामयी मां शक्ति यानी स्नेह का स्वरूप मानकर उन्हें पूजते हैं। नवग्रहों, दिशाओं, नदियों, तीर्थों, समुद्रों, ग्राम देवताओं के साथ योगियों को कलश में विराजने हेतु हाथ जोड़ प्रार्थनाकर उनका आहवान किया जाता है। कलश में मुद्रा, सुपारी, सात प्रकार की मिट्टी को सादर अर्पित किया जाता है और कलश को चारों ओर से पत्तों से सुशोभित किया जाता है।
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नवरात्र के पूरे इन नौ दिनों में संयम और अपने आचरण, खान-पान में सात्विकता बनाए रखनी चाहिए। घर पूरी तरह से साफ सुथरा रहना चाहिए। घर में कपूर का उपयोग सुबह-शाम करना चाहिए। इससे देवी तो प्रसन्न रहती ही हैं साथ ही घर की नकारात्मक ऊर्जा भी दूर होती हैं।
किस प्रकार का फूल चढ़ाएं
मां देवी को गुड़हल का फूल चढ़ाना बेहद शुभ माना गया है। इसके अलावा बेला, चमेली, कमल और दूसरे लाल पुष्प आप समर्पित कर सकती हैं। फूलों की सुगंध जितनी अच्छी होती है, ईश्वर का वास उसी घर में सबसे ज्यादा होता है। इसलिए घर को सुगंधित करने के लिए अगरबत्ती का उपयोग करें। मां को आक, मदार, दूब और तुलसी बिल्कुल ना चढ़ाएं।
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