मां दुर्गा शक्ति की उपासना सनातन काल से होती आ रही हैं। यह पर्व आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होकर नौ दिन तक चलता हैं। इसे शारदीय नवरात्र कहते हैं। इस साल देवी की आराधना का यह पर्व 21 सितम्बर 2017 (गुरूवार ) से शुरू हो रहा हैं। मां दुर्गा के नौ रूपों का पूजा- पाठ 29 सितम्बर तक चलेगा और ठीक अगले दिन 30 सितम्बर 2017 को दशहरा मनाया जाएगा। आदिशक्ति के हर रूप की नौ दिनों तक पूजा करने की वजह से इसे नवरात्र के नाम से भी जाना जाता हैं। यह हिन्दू समाज के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार हैं। जिसका धार्मिक, आध्यात्मिक इत्यादि दृष्टिकोण से भी काफी महत्व हैं। दुर्गा सप्तशती में इसकी महिमा का विशेष बखान मिलता हैं। माता की उपासना करने से सारे दुख दूर हो जाते हैं और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती हैं।
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नवरात्र के प्रथम दिन देवी शैलपुत्री की पूजा का विधान :
पहले दिन आदि-शक्ति शैलपुत्री का पूजन किया जाता हैं। यह श्री दुर्गा का प्रथम रूप हैं। पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता हैं। मां शैलपुत्री के बाएं हाथ में कमल का पुष्प और दाहिने हाथ में त्रिशूल लिए हुए है, अपने वाहन वृषभ(बैल) पर विराजमान होती हैं। देवी के इस रूप की पूजा करने वाले साधकों का मूलाधार चक्र जागृत होता हैं और यहीं से योग साधना आरंभ होती हैं जिससे अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त होती हैं।
‘वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥’
नवरात्र के प्रारंभ में कलश स्थापना की जाती है। जहां कलश स्थापित करते हैं उस स्थापना को गाय के गोबर और गंगाजल से लिप कर शुद्ध किया जाता हैं। मां की पूजा में सभी, नदियों, तीर्थों, दिशाओं, ग्राम देवता को आमंत्रित किया जाता हैं। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, मुद्रा, सुपारी को भेंट की जाती हैं। इसके अलावा कलश की स्थापना की जाती है। कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौं बोएं जाते हैं जिन्हें दशमी को काटा जाता हैं। नवरात्र के पूरे नौ दिन में संयम और अपने आचरण, खान-पान में सात्विकता बनाएं रखनी चाहिए। घर में कपूर का सुबह-शाम उपयोग कर पूजा करना चाहिए। इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती हैं।
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मां को गुड़हल का फूल चढ़ाना बेहद शुभ माना गया हैं। इसके अलावा बेला, चमेली, कमल और दूसरे लाल पुष्प भी आप समर्पित कर सकती हैं। लेकिन मां को आक, मदार, दूब और तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।
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