आज नवरात्र का छठां दिन प्रारंभ हो चुका हैं जिसमें आज के दिन शक्ति रूपा माँ जगदम्बा के कात्यायनी रूप की पूजा की जाती हैं जो अपने भक्तों की सभी मुरादों को पूरा कर उन्हें हर दुख दर्द से मुक्त करती हैं। बताया जाता हैं कि कत नामक प्रसिद्ध महर्षि के कुल में ऋषि कात्यायन भगवती माँ के सबसे बड़े उपासक थे। उन्होंने माँ भगवती को प्रसन्न करने के लिए कई वर्षों तक घोर तपस्या की थी। जब माँ भगवती उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर उनके समक्ष आई तो उन्होंने अपनी इच्छा जाहिर करते हुए माँ भगवती को अपने घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने को कहा। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना सहज ही स्वीकार कर ली और उनके यहां एक पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसके कारण देवी का यह स्वरूप कात्यायनी कहलाया।
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बताया जाता हैं कि माँ भगवती ने धरती पर हो रहें दानव दल के अत्याचारों को खत्म करने के लिए ही इस रूप में जन्म लिया था। उस दौरान दानवों के आतंक से धरती से लेकर स्वर्ग में इंद्र का सिंहासन भी ढोल रहा था। देवी – देवता भी दानव के हो रहें अत्याचारों से त्राहि – त्राहि मचा रहें थे। तब इस शक्ति ने देवी – देवताओं के साथ ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने के लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में जन्म लिया। महर्षि कात्यायन ने उसका भरण पोषण किया।
इसी देवी ने शुक्ल पक्ष की सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी के इन तीनों में कात्यायन ऋषि की पूजा को ग्रहण किया और दशमी के दिन देवी ने महिषासुर का वध कर उसका अंत कर दिया। तभी से लेकर आज तक उनकी दिव्य शक्ति स्वरूप का प्रकाश इस धरती पर प्रकाशमान हैं। उनके शरीर से निकला तेज आज भी सूर्य के समान चारों पर दमकता रहता हैं।
चार भुजाओं वाली मां जगदम्बा का दाहिना हाथ ऊपर की ओर अभयमुद्रा में और नीचे वाला वरमुद्रा में रहता है। बाई ओर के ऊपरवाले हाथ में तलवार तो नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित रहता है। इनका वाहन सिंह है। मां भवानी की पूजा जो भक्त सच्चे मन से करता है और उनके दरबार में जो भी जाता है। वह खाली नहीं आता, माँ उसे सब सुख देकर उसकी झोली को भर देती हैं।
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मां कात्यायनी को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जाप करें :
“या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥”
“चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना।
कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि।।”
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