दुनियांभर में 12 मई को मदर्स डे (Mother’s Day) का जश्न पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। क्योकि यह दिन मां को समर्पित करने वाला दिन होता है। हमारी जिंदगी मां का स्थान भगवान स्वरूप होता है। जिसके बिना हमारा जीवन अधूरा है। और इसी बात को हमेशा याद दिलाता रहा है हमारी बॉलिवुड। जहां पर बनी फिल्म भी मां के बिना अधूरी रहती हैं। इसी बॉलीवुड ने भी इस अनमोल रिश्ते को पर्दे पर दिखाने और लोगों तक मां-बच्चों के रिश्ते की अहमियत पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। फिर चाहे टीवी सीरियल्स हो या फिल्म। इनमें हमें हर तरह की मां का रूप देखने को मिला हैं, हिटलर से लेकर प्यारी मां,, सिंपल से लेकर स्टाइलिश मां. रोल कैसा भी हो पर मां की अहमियत कभी कम नहीं होती. मातृ दिवस पर आइए जानते हैं, ‘मां’ के चरित्र पर आधारित कुछ हिन्दी फिल्म..
“Maa”
आपने यदि मां फिल्म देखा तो मां का चरित्र निभाने वाली निरूपा रॉय का चेहरे पहले ही आपके दिमाग में आ गया होगा। इसी नाम से(1992) में बनी दूसरी फिल्म “मां” जिसमें जया प्रदा इसमें ‘मां’ के रोल में नजर आई थीं। इसमें जया प्रदा एक बच्चे को जन्म देने के बाद ही मर जाती हैं। और कुछ लोग उसके बेटे को मारने की कोशिश करते हैं। तब जया आत्मा बनकर अपने बच्चे की रक्षा करती है। ये होती है मां की मंमता जो मरने के बाद भी अपने बच्चों को दर्द में नही देख सकती है। इसके अलावा हम जया बच्चन को भी याद करते हैं जो अपने बेटे के नक्शेकदम पर चलकर लंदन के भीड़ मॉल में भरी भीड़ में अपने बच्चे के चलते कदमों को महसूस करती है। उसे देखे बिना ही जान जाती है कि उसका बेटा उसके आसपास ही है। ये होती है मां।
इसी तरह से बॉलीवुड मे फिल्म मॉम्स ने भारतीय सिनेमा का चेहरा बदल दिया है। बॉलीवुड के अलावा और कोई जगह नहीं है जहाँ माताएँ इस तरह पूजनीय होती हैं। किसी किसी फिल्मस में देवर ने भाभी को मां का दर्जा देकर उनका स्थान भी पवित्र बना दिया है। इसी तरह से फिल्म “दीवार” में बोली गई आक लाइन को लोग आज तक नही भूले है जिसमें बोला गया था “मेरे पास मा है।” बॉलीवुड फिल्में में मां के दर्जें को सबसे उपर रखकर हमेशा बताया गया है कि मां हमारे जीवन की प्रेरक शक्ति है।
मदर इंडिया (1957)
इस फिल्म में गांव में रहने वाले लोगों की विषम परिस्थितियों को दर्शाया गया है कि जो लोग बेहद गरीब होते है उनका जीवन किस तरह का होता है। इसी तरह से इस गांव में राधा (नरगिस) अपने पति और अपने दो बेटे के साथ एक गरीब जीवन व्यतीत करती है। राधा और शामू की शादी करने के लिए उसकी मां ने सुखीलाल नामक बनिये से पैसे उधार लिए थे। लेकिन समय पर कर्ज नहीं चुकाने के कारण उन्हें अपनी जमीन बेचनी पड़ जाती है। गरीबी से परेशान होकर शामू राधा और बच्चों को छोड़ चला जाता है। जिससे उसका बड़ा बेटा बिरजू सुखीलाल के प्रति काफी नाराजगी व्यक्त करता है। हर बार उस पर हमला करने की असफल कोशिश करता है। यहां तक एक बार जब वो बेटी से शादी करने के लिये उसे लेकर भागता है तो उस समय मां राधा एक कठोर कदम उठाती है। औक अपने बेटें को इसकी सजा मौत दे देती है। और उसका बाहों में उसका बेता मर जाता है। यह फिल्म मां के असीम साहस का प्रदर्शन करती है जिसमें एक ओर जहां माँ जहां बच्चों को प्यार के आंचल में बैठाती है तो वही दूसरी ओर वह सुरक्षा के लिये बलिदान भी कर देती है।
दीवार (1975)
इस फिल्म की कहानी एक महिला के उपर दर्शायी गई है जिसमें एक माँ अपने दो बेटों विजय और रवि के साथ रहती है जब बच्चे छोटे रहते है तभी उनके पिता उन्हे छोड़ देते है। पिता के ना रहने से दोनो बच्चे विपरीत दिशा में चलने वाले होते है। विजय पढ़ाई में ध्यान ना देकर ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में अंडरवर्ल्ड का हिस्सा बन जाता है जबकि छोटा बेटा रवि पढ़ाई करके एक इमानदार पुलिस ऑफिसर बन जाता है। जब दोनों भाइयो के बीच दीवार खड़ी होती है तो आपस में ही बटवारा कर लेते है जिसमें मां के बटवारे का जब प्रश्न आता है तो दोनों के सामने क प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है लेकिन मां दोनों में से उसे ही चुनती है जो सही है।
करन अर्जुन (1995)
इस फिल्म में राखी गुलज़ार ने दुर्गा सिंह की भूमिका निभाई है जो अपने पति को जल्दी खो देती है। और अकेले रहकर अपने दो बेटे करण और अर्जुन की जिम्मेदारी अकेले उठाती है। वह उन्हें हर तकलीफों सें दूर रखकर प्यार से पालती है पर वह उन्हें अपने पिता की मौत की सच्चाई के बारे में नहीं बताती है। लेकिन बेटे इसका पता लगा लेते हैं और बदला लेने के लिए निकल पड़ते हैं। हालांकि, दोनों मारे जाते हैं और दुर्गा तबाह हो जाती है जिससे वह अपना दिमागी संतुलन खो बैठती है। इसके बाद दुर्गा प्रतिदिन अपने पुत्रों को वापस करने के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। 17 साल बाद करण और अर्जुन की तरह दिखने वाले दो लड़के उसके जीवन में प्रवेश करते हैं और उस आदमी से बदला लेने के लिए दृढ़ होते हैं जिसने उसके परिवार को नष्ट कर दिया। तो, यह फिल्म एक माँ के दृढ़ संकल्प और प्यार के बारे में है जो वास्तव में चमत्कार बना देती है
कभी खुशी कभी ग़म (2001)
इस फिल्म में जया बच्चन ने नंदिनी की भूमिका निभाई है जो राहुल नाम के एक लड़के को गोद लेती है। धीरे-धीरे वह अपने दत्तक पुत्र के काफी करीब हो जाती है और अपने असली बेटे को जिसे उसने जन्म दिया है। से भी ज्यादा उसको मानती है जब राहुल बड़ा होता है, तो वह एक अलग जाति की लड़की से शादी करने की इच्छा व्यक्त करता है। लेकिन इचिछा के विरूध शादी करने से उनके पिता नाराज हो जाते है। और राहुल को अपनी जिंदगी से बाहर कर देते है। लेकिन अंत में यह देखा जाता है कि एक माँ का प्यार इतना मजबूत होता है कि वह अपने पति के कठोर दिल को भी पिघला देती है और वह फिर से दोबारा अपने बच्चों को अपने जीवन में वापस लाने में कामयाब हो जाती है।
चांदनी बार (2001)
इस फिल्म में नायिका का रोल निभा रही तब्बू ने मुमताज़ पी सावंत की भूमिका निभाई है इस फिल्म में दिखाया गया है कि वह सांप्रदायिक दंगों में अपने घर और परिवार को खो देती है। और अपने एकमात्र बचे रिश्तेदार चाचा के साथ रहने लगती है। अपना जीवन यापन करने के लिए वह चांदनी बार में एक डांसर के रूप में काम करना शुरू कर देती है। उसका चाचा उसके द्वारा कमाए हुये पैसों को अपने शौक और शराब पर उड़ाने लगता है। इतना ही नहीं एक रात मौके का फायदा उठाकर वह मुमताज का बलात्कार करने लगता है। जिससे वो किसी तरह से भागकर शादी का पैशला करती है और ड्रग लॉर्ड से शादी कर लेती है। इसके बाद वह दो बच्चों को जन्म देती है। ड्रग लॉर्ड से शादी करने बाद उसकी जिंदगी चुनौतियों से भर जाती है और वह बच्चों के लिये हर चुनौतियों का सामना करती है।
क्या कहना (2000)
यह कहानी प्रिया नाम की एक ऐसी लड़की की है जो कॉलेज में अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिये आती है जहां उसकी मुलाकार राहुल से होती है कुछ समय बाद दोनों में प्यार हो जाता है। और नदानी में उठाये गलत कदम से वो राहुल के बच्चे के मां बन जाती है। जब राहुल को पता चलता है तो वह उससे रिश्ता तोड़ देता है। जिसके बाद प्रिया तय करती है कि वह अपने बच्चे को जन्म देगी और उसे स्वतंत्र रूप से पालेंगी और उसे अपना सब कुछ देगी। यह कहानी बताती है कि जब पूरी दुनिया किसी एक महिला के खिलाफ हो जाती है तब भी वह अकेली महिला अपने बच्चे को बचाने के लिए कितनी मजबूत हो सकती है।
इंग्लिश विंग्लिश (2012)
यह फिल्म काफी अच्छी और सभी के लिये एक सबक है इस फिल्म में श्रीदेवी जी ने शशि गोडबोले की भूमिका निभाई है जिसमें वो एक साधारण महिला होने के कारण अंग्रेजी में बात करना नहीं जानती हैं। जिससे उनकी बेटी अक्सर उनकों बात बात पर टोककर उनकी अंग्रेजी का मजाक उड़ाती थी। उनकी बेटी अंग्रेजी ना आने के कारण उन्हें नीचा गिराती है जिससे वो हताश होकर अपने पति और बेटी से कुछ सम्मान पाने की इच्छा से अमेरिका चली जाती है और वही पहुंचकर अंग्रेजी बोलने वाले स्कूल में एडमिशन लेती है। फिल्म के अंत में, वह अपनी बेटी के लिए अंग्रेजी में भाषण देती है। अग्रेंजी में बोलते देख बेटी के आखों से पछतावे के आसूं बहने लगते है। और वह सभी का दिल जीत लेती है। यह फिल्म उन लोगों के लिये सबसे बड़ी सीख है जिसके लिये माताएँ अपने बच्चों से थोड़ा प्यार और सम्मान पाने करने के लिए हर सीमाए पार कर सकती हैं।
जज़्बा (2015)
इस फिल्म में, ऐश्वर्या राय बच्चन ने अनुराधा वर्मा की भूमिका निभाई है, जिसमें वो एक क्रिमनल वकील हैं एक मां होने के साथ वो एक ऐसी वकील थी जिसमें पॉवर जज्बा और एक शक्ति है। कभी भी अपने द्वारा लड़े गए केस में हार का सामना नही किया था।, लेकिन कुछ गिरोह के गुंडे उसकी बेटी का अपहरण कर लेते है। बेटी की रक्षा के लिये वो एक शक्तिशाली मां बनकर बच्चों के अपहरण के लिए होने वाले अपराधों के बारे में जागरूकता लाती है और एक मजबूत माँ का प्रतिनिधित्व करती है जिससे वो अपने बच्चे की रक्षा करती है।
मॉम (2017)
यह फिल्म देवकी (दिवंगत श्रीदेवी) के बारे में है, जो एक प्यारी पत्नी होने के साथ दो खूबसूरत बेटियां की मां भी हैं लेकिन सौतेली होने के कारण एक मां होने की सच्ची खुशी उसे नही मिल पाती। उसकी बेटी आर्य उससे दूर दूर रहती है। वह एक संवेदनशील लड़की है और अपनी माँ के प्यार को पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाती है। देवकी हमेशा आर्य से प्यार पाने के रास्ते तलाशती रहती है। लेकिन एक दिन एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटती है और आर्य का रेप करके उसे किसी गटर में फेंक दिया जाता है। और कानूनी लड़ाई से उसे कोई जबाब नही मिलता है अंत में वो अपनी बेटी के लिए लडाई लड़ने के लिये खुद आगे बड़ती है और चीजों को अपने हाथों में लेती है। यह कहानी उस महिला के बारे में है जब तक वो शात रहती है तब तक मां होती है जब बच्चों को आफत आती है तो मां के रूप में सभी के लिये एक चुनौती बन जाती है।
हेलीकाप्टर एला (2018)
एस फिल्म की कहानी एक सिंगल पेरेंट ईला (काजोल) की है जो एक महत्वाकांक्षी गायिका होने के साथ एक माँ है। वह अपने इकलौते बेटे “विवान” की परवरिश करने के सपने देखती है। अब उसका बेटा बड़ा हो गया है और वह नहीं चाहता कि उसकी माँ उसकी ज़िंदगी के इर्द-गिर्द घूमे। हालांकि, एला एक ओवरप्रोटेक्टिव मां है जिसकी वजह से वो अपने बेटे के नजदीक रहने के लिये उसी के कॉलेज में दाखिला ले लेती है ताकि वह उसके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिता सके। लेकिन विमान को अपनी मां के केयर बिल्कुल भी पसंग नही आता। क्योकि वह दोस्तों के सामने भी एक छोटे बच्चे की तरह विवान का ख्याल रखती है। जिससे उनके इसलिए उनके रिश्ते दरारे आने लगती है। यह कहानी एक माँ के बारे में है जो चाहती है कि उसका बच्चा उसे दूर कही ना जायें।
बॉलिवुड ने हमें वो मां दी है जिन्होनें हर किसी रिश्तों को मजबूत बंधन से जोड़ने की भरपूर कोशिश की है। हम इस मदर्स डे पर बॉलीवुड की उन माताओं को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे है जो आज इस दुनियां में भले ही नही है पर फिल्म में मां की एक मजबूत भूमिका निभाकर हमेशी के लिये अमर हो चुकी है।