आजकल की व्यस्त ज़िन्दगी में डिप्रेशन या अवसाद एक ऐसी बिमारी है जो तेज़ी से अपनी पकड़ बना रही है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसके होने या न होने का पता शायद ही आपको लग पाए। हमारे समाज में अब भी डिप्रेशन को लेकर लोग इतने सजग नहीं है, जितना उन्हें होना चाहिए। कई लोग तो यह जान भी नहीं पाते कि वह डिप्रेशन के शिकार हैं। अवसाद मुख्य रूप से दो तरह के होते हैं एक डीस्थ्यिमिक डिसोर्डर और दूसरा मेजर डिप्रेसिव डिसोर्डर। लेकिन मेजर डिप्रेसिव डिसोर्डर को मुख्य अवसाद माना जाता है।
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मेजर डिप्रेसिव डिसोर्डर
इस तरह के अवसाद में रोगी के कामकाज पर प्रभाव पड़ता है। इसमें उसके सोने, खाने, पढ़ने और काम करने की क्षमता प्रभवित होती है। इसमें व्यक्ति के अंदर मिश्रित लक्षण दिखते हैं और वह सामान्य रूप से काम नहीं कर पाता। यह अवसाद व्यक्ति को जीवन में एक ही बार होता है। लेकिन इसकी पुनरावृति व्यक्ति के जीवन में पूरी ज़िन्दगी भर होती रहती है।
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डीस्थ्यिमिक डिसोर्डर
डीस्थ्यिमिक डिसोर्डर डिप्रेशन को डीस्थेमिया कहा जाता है। यह अवसाद व्यक्ति के जीवन में 1 या 2 साल या उससे ज्यादा वक्त तक भी रहता है। इसके लक्षण गंभीर नहीं होते, लेकिन व्यक्ति को अपने रोज़ के काम करने में मुश्किल होती है। साथ ही वह स्वयं को अस्वस्थ भी महसूस करता है। इसके अलावा इस तरह के अवसाद में व्यक्ति को जीवन में कभी मेजर डिप्रेसिव डिसोर्डर भी हो सकता है। लेकिन इसके अलावा भी अवसाद के कई प्रकार है, जिनके बारे में हम आपको नीचे बता रहे हैं –
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सायकोटिक डिप्रेशन
जब कोई व्यक्ति बहुत ज्यादा अवसाद में हो और उसके साथ मनोविकृति की भी समस्या हो, इस तरह के अवसाद को सायकोटिक डिप्रेशन कहा जाता है। मनोवृति के दौरान व्यक्ति सच्चाई से अनजान रहता है, इसके अलावा उसकी मनोदशा ऐसी हो जाती है कि उसे किसी चीज़ का आभास होना, मतिभ्रम होना आदि समस्याएं होने लगती हैं।
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पोस्टपार्टम डिप्रेशन
इस तरह का अवसाद मां बनने वाली महिला को बच्चे के जन्म के बाद होता है। इसके लक्षण बच्चे के जन्म के एक मास के अंदर ही दिखने शुरू हो जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार दस से पंद्रह फीसदी महिलाओं को बच्चे के जन्म के बाद इस प्रकार के अवसाद का अनुभव करना पड़ता है।
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सीज़नल अफेक्टिव डिसोर्डर
इस तरह का अवसाद ठण्ड के मौसम के दौरान प्रकट होता है। इस मौसम में जब प्राकृतिक तौर पर सूर्य के प्रकाश की मात्रा कम प्राप्त होती है, तब इसके लक्षण दिखते हैं। इसका असर गर्मियों और वसंत के मौसम में कम हो जाता है। इस तरह के अवसाद का उपचार लाइट थैरेपी की मदद से संभव है। लेकिन इस रोग से पीड़ित आधे लोगों का इलाज ही प्रकाश थैरेपी से किया जा सकता है। बाकी लोगों का दवा और और सायकोथेरेपी की सहायता से इलाज किया जाता है। अगर जरूरी लगे तब लाइट थैरेपी का उपयोग किया जाता है।
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बाइपोलर डिसोर्डर
इस तरह के अवसाद को उन्मादी अवसाद भी कहते हैं। लेकिन यह डीस्थेमिया या मेजर डिप्रेशन के जैसा सामान्य नहीं है। इस तरह के अवसाद से पीड़ित व्यक्ति का मूड अचानक अधिक उच्च स्तर((उन्माद) से अधिक निम्न स्तर(अवसाद) में बदल जाता है।