दुर्गा पूजा में ही निहित है नारी शक्ति का रहस्य

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आप कोलकाता से हैं, तो आप दुर्गा पूजा के सांस्कृतिक महत्व को बखूबी जानते ही होंगे। लेकिन आप इस जगह से संबंध नहीं भी रखती हैं, तो भी आप इस दिन की अहमियत थोड़ी बहत तो जानती होंगी। अगर आपने अब तक इस रात के रहस्यमय आभा और सौंदर्य का अनुभव नहीं किया है, तो ऐसे में धैर्य के साथ इस ब्लॉग को पढ़े।

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इस एक ब्लॉग पोस्ट को पढ़कर आप अपना स्थान छोड़कर दुर्गा पूजा के पंडाल में जानें के लिए विवश हो जाएंगे। इस पोस्ट ने आपको भीतर से पंडाल में जाने के लिए विवश नहीं किया, तो शायद कोई भी चीज आपको दुर्गा मां के पंड़ाल पर जाने के लिए नहीं मना सकती हैं।

Women devotees are exchanging the vermilion on the occasion of the conclusion of the Durga Puja on Dasami Day at a pandal in New Delhi on October 02, 2006.Image Source:

त्योहारों के इस मौसम में दुर्गा पूजा से जुड़ी कुछ खास बातों को भी जरूर जानें –

दुर्गा मां शक्ति और वीरता का प्रतीक है। वह हिंदू पौराणिक कथाओं की सबसे सुंदर, अर्थपूर्ण और शक्तिशाली महिला योद्धा देवी हैं। उनकी कहानी बुराई पर सच्चाई की जीत की महिमा है। दुर्गा मां ने महिशासुरमर्दनी का अवतार लेकर दुष्ट दानव महिशासुर का वध किया, जिसने ब्रहमांड की स्थिरता को चुनौती देने का दुसाहस किया था। दुर्गा मां के भयंकर अवतार को छोड़कर अगर हम उनकी ममता को देखें तो पाते हैं कि मां अपने बच्चों को बुरी शक्तियों और दुखों से बचाकर उनकी रक्षा करती हैं।

अगर दुर्गा मां की बात करें तो, वह एक बुनियादी भारतीय नारी की तरह बिल्कुल नहीं है, जो कि अपने सारे अधिकारों को भूलकर विनम्रता से सारे दुखों को सहे। यह भारतीय नारी के इस रूप से काफी अलग है। वह अपने अधिकार के लिए, हिंदू समाज की रूढ़ियों का विरोध करने और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं।

एक आधुनिक भारतीय नारी के गौरव गान के लिए दुर्गा पूजा से बेहतर कोई तरीका नहीं होता है।
इस त्योहार की तैयारियां कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती है। दुर्गा मां की मूर्तियों को पेंटिंग करना, यह काम आमतौर पर आधे महीने पहले से ही होने लग जाता है। दुर्गा मां की मूर्ति को बनाने के लिए स्ट्रॉ, लकड़ी के डंडे और रंग की जरूरत होती है। दुर्गा मां की इन मूर्तियों पर नक्काशी आज भी पुरुष ही करते हैं।

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इस पंडाल में लोगों का मेलजोल होता है, जिसके कारण यह एक सामाजिक महोत्सव भी होता है। एक कलाकार की कल्पना ही पंडाल को विस्तार रूप देती हैं।

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जैसे ही कैलेंडर के पन्नों में अक्टूबर का महीना आता है, वैसे ही कोलकाता का पूरा शहर इस उत्सव को मनाने के लिए तैयार हो जाता है। पंडाल में आपको दुर्गा मां की मुर्ती के साथ ही उनके चार बच्चों की मूर्तियां भी देखने को मिलेगी।

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हमारे हिंदू पौराणिक कथाओं में, यह देवता केवल एक इकाई नहीं है। वह हमारी विचारधाराओं का सार को अभिव्यक्ति करने का प्रतिनिधत्व करते हैं। यह विचारधारा बदलती दुनिया के साथ भी लगातार बनी रहती है।

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इन जगहों पर देश भर के सभी प्रसिद्ध कलाकार अपनी भक्ति और प्रतिभा का प्रदर्शन करने के लिए आते हैं। लगातार 5 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में रंग, ध्वनि, सुंदरता, खुशी और एकजुटता पूरी तरह से दिखाई जाती है।

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दुर्गा पूजा का भव्य कार्निवल कारोबार के विस्तार का भी समय होता है। आप ऐसे में शहर में कई सैकड़ों होर्डिंग देख सकते हैं। इस समारोह की मुख्य रस्में अभी भी पुरुष नहीं करते हैं। महिलाएं ही स्थापना के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

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युवा महिलाएं इस समारोह में आकर्षण का केंद्र होती हैं। वह धाकी की धुन पर नाचती हैं और अपनी खुशी को व्यक्त करती हैं।

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इस समारोह के आखिरी दिन देवी दुर्गा की विदाई की जाती है। एक आखिरी बार फिर लोग मां के प्रति अपनी भक्ति और प्यार को व्यक्त करते हैं।

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देवी दुर्गा की विदाई के दौरान सिंदूर खेल नाम का एक समारोह होता है। बारां और सिंदुर खेल महिलाओं द्वारा ही खेला जाता है।

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भव्य उत्सव के अंतिम अधिनियम मूर्ति विसर्जन समारोह जिसे आमतौर पर भिसाजन के नाम से जाना जाता है, इस समय मां के सारे भक्त नाचते गाते मां की मूर्ति को साथ लेकर शहर में घुमाते हैं और फिर मां का विर्जन जल में कर दिया जाता है।

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दुर्गा पूजा और महिलाएं दोनों ही अविभाज्य है और यह सच भी है कि देवी दुर्गा के इस त्योहार को महिलाएं काफी अच्छी तरह से मनाते हैं।

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