देश को आजाद हुए 69 साल हो गए हैं। हर साल की तरह इस साल भी हमारे देश में आजादी का जश्न बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। जिसकी तैयारी काफी दिनों से बड़े ही जोर-शोर से चल रही है, पर इस जोर-शोर वाले आजादी के जश्न में देश में महिलाएं क्या आजाद हो पाई है? दुर्गा, काली, सरस्वती ये तीन रूपों में पहचाने जाने वाली शक्ति आखिर क्यों क्षीर्ण होती जा रही है।
भारत माता की लाज बचाने के लिए आजादी के दीवानों ने अपना बलिदान देकर उन्हें अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ा लिया। लेकिन हमारे देश में ही पैदा हुए कई दानवों के पैरों तले महिलाएं आज भी पिस रही हैं। आज भी महिलाओं की आंखों में आंसू और पांवों में बेड़ियां बधी हुई हैं। कभी भी दरिंदा उसकी आबरू को तार-तार करता है, तो कोई तेजाब फेंक उसके जीवन के सारे सपने चेहरे के साथ जला डालता है।
दूर देश के लोगों की क्या बात करें, यहां तो अपने ही लोग दुश्मन बने बैठे हैं। आज भी ना जानें कितनी बेटिया जन्म लेने से पहले ही कोख में मार दी जाती है यदि सच्चाई की बात करे तो अजाद भारत देश में आज भी महिलाएं अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रही है।
आज देश की आजादी के भले ही 69 साल हो चुके हो,पर लोगों की धारणा आज भी उतनी ही संकुचित है जितनी पहले थी। आज भी स्त्री के प्रति पुरूष की वही पुरानी मानसिकता देखने को मिलती है। क्या इस स्वतंत्र भारत देश में महिलाएं पूरी तरह से स्वतत्रं हो पाई है? क्यो बार-बार इस बात को अहसास कराया जाता है। कि इस देश में महिलाएं पहले भी परतंत्र थी और आज भी परतंत्र है।
महिलाओं के समान अधिकार की बात करें, तो स्वतत्रं भारत देश में जहां लड़कियों ने अपने ज्ञान कौशल के बलबूते पर बुलदियां हासिल की, तो वहीं उन्हें समय-समय पर उनकी कमजोरी का एहसास कराने वाले नरभक्षी भी अपना जाल फैलाये खड़े रहे है। समान अधिकार का ख्वाब सजाये जब भी महिलाएं आगे बढ़ी हैं तो उन्हें आगे बढ़ने के लिए कई तरह के आदमखोर अत्याचारियों के बीच से होकर गुजरना पड़ा
समानता के अधिकार में महिलाओं को किस प्रकार के समान अधिकार मिले है इस बात को तो आज तक की महिलाएं समझ ही नहीं पाई है। ऊंचे ओहदे में रहने के बाद भी आज भी बच्चे और रसोई औरतों के हिस्से में बने हुए हैं आज भी इस आजाद आधुनिक देश में 90% महिलाएं नौकरी करने के बाद घर पहुंचते ही रसोई में काम करती हैं, पर क्या पूरी जिम्मेदारी महिलाओं की है पुरूषों की नहीं।
महिलाओं ने जहां बंद दीवारी के बीच रहकर भी सब दर्जों को बाखूबी निभाया है और हर रूपों में वो खरी भी उतरी है। और इसी महानतो को देख हर समय महिलाओं की शक्ति को सरस्वती, लक्ष्मी काली और मामता की देवी के रूप में नवाजा गया है। एक औरत ने अकेले रहकर दो कुलों की आन-बान और शान बनाये रखने के महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता आई है फिर भी आज लोग क्यों उसे जीवन देने को बजाय मौत देने से भी पीछे नहीं हट रहें हैं। ये समाज के लिए एक बड़ा प्रश्न बना हुआ है।