नवरात्र का दूसरा मां ब्रहमचारिणी की पूजा की जाती है। साधक एवं योगी इस दिन अपने मन को भगवती मां ब्रह्मचारिणी के श्री चरणों में एकाग्रचित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते हैं। फलदायिनी देवी ब्रह्मचारिणी मां का स्वरूप अत्यंत भव्य, तेजयुक्त और ज्योतिर्मय हैं। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल विराजमान हैं। इनकी उपासना करने का मंत्र कुछ इस प्रकार हैं :
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या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती हैं, इसलिए जो साधक सच्चे मन से मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करते है, मां उनके कष्टों को हरने के लिए जरूर आती है। मां सबकी झोली भरकर अपार भण्डार भरती है, इसलिए मां ब्रह्मचारिणी की उपासना पूरी विधि-विधान के अनुसार ही करनी चाहिए।
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पूजा विधि :
सर्वप्रथम आपको अपने देवी-देवताओं, गणों व योगिनियों को कलश में आमंत्रित करना होता हैं। इसके बाद कलश की फूल, रोली, चंदन और अक्षत से पूजा की जाती हैं। उन्हें दूध-दही, शर्करा, घी व मधु से स्नान कराकर देवी को कुछ प्रसाद अर्पित की जाती हैं। इसके बाद आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट करते हैं और इस प्रकार माता की पूजा सम्पन्न की जाती हैं। अपने हाथों में एक फूल लेकर इस मंत्र का जाप करते हुए प्रार्थना करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
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“दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू. देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा”
इसके माता ब्रह्मचारिणी को पंचामृत से स्नान कराकर फूल, अक्षत, कुमकुम, सिंदूर आदि अर्पित करें। अंत में क्षमा प्रार्थना जरूर करें।
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