Home विविध सप्तम नवरात्र : देवी कालरात्रि का महत्त्व और इनकी पूजा विधि

सप्तम नवरात्र : देवी कालरात्रि का महत्त्व और इनकी पूजा विधि

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आज नवरात्रों का सातवां दिन देवी कालरात्रि का दिन हैं। आज के दिन नौ देवियों में से सातवीं शक्ति माँ कालरात्रि की पूजा की जाती हैं। अतः माँ दुर्गा के इस सातवीं शक्ति या स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता हैं। शक्ति रूपी माँ काली का स्वरूप देखने में अत्यंत विकराल और भयानक नजर पड़ता हैं क्योंकि इनका स्वरूप काली रात के अंधकार की भांति काला होता हैं। इनके केश बिखरे हुए और गले में बिजली की चमक वाली माला होती हैं। इनकी नासिका से श्वास और निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। माँ ने यह भयंकर स्वरूप राक्षसों के नाश के लिए ही धारण किया था।

चार भुजाओं वाली माँ अपने भक्तों को दायीं ओर की ऊपरी भुजा से वरदान देती हैं और नीचे की भुजा से वो अभय का आशीर्वाद देती हैं। वहीं बायीं भुजा में खड्ग और तलवार को धारण किए हुए हैं। देवी कालरात्रि की सवारी गंदर्भ हैं। जिसमें वो विराजमान रहती हैं।

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कालरात्रि की पूजा विधि :

सप्तमी के दिन माँ का दरवाजा खुल जाता हैं, परन्तु रात में विशेष विधान के साथ माँ कालरात्रि की पूजा की जाती हैं। इस दिन अनेक प्रकार की मिठाईयाँ अर्पित की जाती हैं वहीं किसी किसी स्थान पर मां के परम भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए देवी को मदिरा भी अर्पित करते हैं।

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” देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्तया, निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां, भक्त नता: स्म विदाधातु शुभानि सा न:

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मां कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए साधक इस मंत्र का जाप करें।

“एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।“
“वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।”

how to worship goddess kalratri on the seventh day of navratriimage source:

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