नवरात्र के अंतिम दिन माँ दुर्गा के नौवें स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा की जाती हैं। आज के दिन इनकी पूजा करने के बाद इस नवरात्री पर्व का समापन हो जाता हैं। माता सिद्धिदात्री माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति हैं। जिनकी पूजा आज के दिन करने का विधान हैं। आदि – शक्ति माँ दुर्गा के इस अंतिम स्वरूप को सभी नौ देवियों में मोक्ष और श्रेष्ठ प्रदान करने वाला माना जाता हैं।
चार भुजाओं वाली माता सिद्धिदात्री का वाहन सिंह हैं। ये कमल पुष्प पर विराजमान रहती हैं। इनकी दायें ओर की नीचे वाली भुजा पर चक्र सुशोभित हैं तो ऊपर वाली भुजा में गदा। इसके अलावा बांयी तरफ के नीचे वाली भुजा में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमलपुष्प पकड़े हुए हैं। माँ सिद्धिदात्री को माँ सरस्वती का दूसरा स्वरूप भी माना जाता हैं। जो श्वेत वस्त्रों के साथ मधुर स्वर और महाज्ञान से भक्तों को सम्मोहित करती हैं।
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हिमाचल के नंदा पर्वत पर इनका प्रसिद्ध तीर्थ स्थल हैं। इन देवी माँ में महिमा, गरिमा, अणिमा, प्राप्ति, लघिमा, वशित्व और ईशित्व प्राकाम्य जैसी सात सिद्धियों का समावेश हैं और जो भक्त सच्चे मन से इस देवी की पूजा भक्ति करता हैं माँ जगदम्बा की कृपा से उसे ये सात सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं।
माना जाता हैं कि इन सात सिद्धियों को भगवान शिव ने देवी की कृपा से प्राप्त की थी। जिसे पाकर शिव जी का आधा शरीर देवी का हो गया था तभी से भगवन शिव का यह रूप अर्द्धनारीश्वर के नाम से जाना जाता हैं।
आज के दिन सिद्धियों वाली माँ सिद्धिदात्री को मनाने से साधक का निर्वाण चक्र जागृत होता हैं। इसके बाद पूरे पूजा विधान के साथ हवन किया जाना चाहिए, पर ध्यान रहें कि हवन के दौरान आप पहले सभी देवी – देवताओं के नाम की आहुति दें फिर आखिर माता के नाम की आहुति देकर सभी नौ देवियों को प्रणाम कर अपने द्वारा की गई गलतियों की क्षमा याचना करें।
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मां सिद्धिदात्री का मंत्र इस प्रकार हैं :
“या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रुपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।”
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