गणेश चतुर्थी के आगमन की तैयारी पूरे देश में बड़े ही जोर-शोर से चल रही है। इन सभी तैयारियों का अंतिम चरण लगभग पूरा हो चुका है। लोग अब भगवान गणेश को अपने घर पर आमंत्रित करने की तैयारी में लग चुके है। गणेश चतुर्थी का यह महा-पर्व इस साल 5 सितंबर को मनाया जा रहा है। यह दिन बुद्धिदाता श्री गणपति का सबसे बड़ा दिन होता है।
घरों में की जाने वाली गणपति की स्थापना यदि सही समय और सही मुहूर्त पर की जाए तो सभी भक्तों की पूजा सार्थक हो जाती है। गणेश जी की पूजा का सही समय मध्यकाल को ही माना गया है क्योंकि गणपति जी का जन्म भी मध्यकाल में ही हुआ था इसलिए इनकी स्थापना भी इसी समय में की जानी चाहिए।
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गणेश चतुर्थी का शुभ मुहूर्त-
इस बार आने वाली चतुर्थी में काफी अच्छे योग बन रहे हैं। रविवार के दिन शाम 6 बजकर 54 मिनट से चतुर्थी आरंभ हो जायेगी और यह 5 सितंबर की रात 9 बजकर 10 मिनट पर समाप्त होगी। गणेश जी की पूजा और स्थापना आप सोमवार को सुबह से लेकर रात 9:10 के बीच में कर सकते हैं। वैसे पूजा का सही समय सोमवार के दिन दोपहर 1 बजे से लेकर 1 बजकर 38 मिनट तक का है।
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कैसे करें पूजा-
- इस महापर्व के दिन लोग भगवान गणेश की पूजा करने के लिए प्रातः काल उठकर मिट्टी के गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर, विधि अनुसार उनका पूजन करते हैं।
- पूजन के बाद रात्रि में चंद्रमा को जल चढ़ाकर पूजा करने वाले ब्राह्मणों को दान दिया जाता है। मान्यतानुसार इस दिन के चंद्रमा को देखना अशुभ माना जाता है, इसलिए चतुर्थी के दिन का चांद नहीं देखना चाहिए।
- गणपति की पूजा में लड्डूओं का भोग लगाने का विधान है और आप भी अपने सामर्थ के अनुसार गणेश जी भोग लगाकर भगवान को खुश कर सकते है।
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गणेश चतुर्थी पर निषिद्ध चन्द्र-दर्शन –
गणेश चतुर्थी के दिन चांद के दर्शन करना वर्जित माना गया है। लोगों का मानना है कि इस दिन चन्द्र के दर्शन करने से मनुष्य किसी कंलक का दोषी बनता है। माना जाता हैं कि इस दिन चन्द्र दर्शन से भगवान कृष्ण पर स्यमन्तक नामक मणि की चोरी करने का झूठा आरोप लगा था। भगवान कृष्ण ने भी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का चांद देखा था जिसकी वजह से उन्हें इस कलंक दोष का श्राप लगा है। तब से लेकर आज तक यही प्रथा चली आ रही है। लोग इस दिन के चांद को दोषपूर्ण मानते है।
अपनी सभी परेशानियों से मुक्त होने के लिए आप गणेश चतुर्थी का व्रत करें, इससे आप अपने सभी दोषों से दूर कर सकते है। कुछ ऐसा ही परामर्श नारद ऋषि ने भगवान कृष्ण को उन पर लगे कलंक के दोष को दूर करने के लिए दिया था।