भगवान ने इस सृष्टि को बनाया हैं। वे ही रचयिता, पालनहार एवं संहार कर्त्ता हैं। धरती पर जब-जब असुरों का अत्याचार बढ़ता हैं, धर्म का नाश होता हैं तब-तब सत्य और धर्म की स्थापना के लिए भगवान धरती पर अवतार लेते हैं। ऐसे में जब मथुरा नरेश कंश का अत्याचार काफी बढ़ गया था, प्रजा परेशान हो गई थी, तब भादों की कृष्ण पक्ष में आने वाली अष्टमी की मध्यरात्रि को भगवान कृष्ण ने मथुरा में अवतार लिया था, इसलिए इस दिन को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता हैं। इस दिन स्त्री हो या पुरुष, सभी उपवास करते हैं। मंदिरों को खूब सजाया जाता हैं। भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती हैं और उन्हें झूला झुलाया जाता हैं। इस दिन चारों ओर उत्सव का माहौल रहता है। इस दौरान व्रत करने के कुछ नियम भी होते हैं तो चलिए जानते हैं इस दौरान ध्यान देने वाली कुछ जरूरी बातों को…
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व्रत करने के नियम –
1. श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन लोग उपवास रखते हैं। आपको बता दे कि इस व्रत से पहले की रात को आप हल्का भोजन ही करें और ब्रह्मचर्य का ही पूर्ण रूप से पालन करें। बच्चे या बीमार स्त्रियां इस दौरान सुबह होने से पहले थोड़ा भोजन कर सकती हैं।
2. उपवास के दिन सुबह में नित्य क्रिया कर्म को कर लें ।
3. इसके बाद सभी देवी-देवताओं को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं।
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4. इसके बाद जल, मिठाई, कुश, धूप को लेकर इन मंत्रों के साथ संकल्प करें।
“ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥“
5. शाम के समय जल में काले तिल डालकर स्नान करें एवं देवकी जी के लिए सूतीकागृह बनाएं।
6. इसके बाद भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति या चित्र को वहां स्थापित करें।
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7. देवकी जी का चित्र उपलब्ध हो तो बहुत अच्छी बात हैं अन्यथा उन्हें याद करते हुए बड़े भाव से उनके चरण स्पर्श करें।
8. हो सके तो रात को मंदिर जाएं, नहीं तो घर पर ही विधि विधान से पूजन करें। पूजा करते समय क्रमानुसार देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा का नाम लें।
9. इन मंत्रों का जाप करें और पुष्पांजलि अर्पित करें।
‘प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।’
10. अंत में प्रसाद वितरण करें और स्वयं प्रसाद ग्रहण करें। हो सके तो रात भर जागते हुए भजन- कीर्तन करें।
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