दशम पिता गुरु गोबिंद सिंह के बारे में भला कौन नही जानता। उनका जीवन लोगों से छिपा नही है। उन्होंने अपना समपूर्ण जीवन धर्म की रक्षा व लोगों की भलाई में लगाया। उन्होंने लोगों को मुगलों के आतंक से मुक्त करवाया और इसके लिए उन्होंने न केवल अपना बल्कि अपने पूरे परिवार का बलिदान दे दिया। “गुरु गोबिंद सिंह” की जंयती के इस अवसर पर आज हम आपको गुरु जी के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों से अवगत करवाएंगे।
गुरु गोबिंद सिंह के व्यक्तित्व व विचारों में दूरदृष्टि, सैन्य क्षमता व ज्ञान का ऐसा तालमेल समाहित था कि कोई भी उनसे प्रभावित हुए बिना रह नहीं पाता था। गुरु गोबिंद सिंह का जन्म बिहार के पटना क्षेत्र में हुआ था। उनकी माता का नाम माका गुजरी व पिता का नाम गुरु तेग बहादुर था जोकि सिक्खों के नौवें गुरु थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही गुरु ग्रंथ साहिब को आने वाले समय में सिख समुदाय का गुरु घोषित किया था। तभी यह सिक्ख धर्म के लोगों का परम पूजनीय ग्रन्थ बन गया।
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चलिए एक बार इतिहास के पन्नों को पलट कर आपको इन तस्वीरों के जरिए गुरु जी के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण क्षणों व उनके समपर्ण की लम्हों के साक्षी बने।
लूनर कैलेंडर के अनुसार गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 16 जनवरी 1666 को बताया जाता है। जबकि अन्य कैलेंडर के मुताबिक यह तारीख 22 दिसबंर कही जाती है। इस बारे में कोई ठोस व सटीक प्रमाण न होने के चलते यह हमेशा चर्चा का विषय रहा है। जिसके चलते उनकी जयंती अलग अलग तारीख पर मनाई जाती है।
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पिता की मृत्यु उपरांत मात्र 9 साल की आयु में ही गुरु गोबिंद सिंह ने गद्दी संभाल ली थी। उनकी योग्यता व सामर्थ्य देख उन्हें गुरु की उपाधि दी गई।
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गोबिंद सिंह जी कई भाषाओं में भी पारंगत थे। संस्कृत के अलावा उनको हिंदी, उर्दू, ब्रज व फारसी भाषा का भी पूरा ज्ञान था। इसके अलावा वह मार्शल आर्ट के भी अच्छे जानकार थे।
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19 साल की आयु में गुरु गोबिंद सिंह ने सितंबर 1688 को गर्वल राजा, भीम चंड, फतेह खान व कई शिवालिक पहाड़ी क्षेत्र के राजाओं से युद्ध किया। इन युद्धों में गुरु गोबिंद सिंह जी विजयी रहे थे।
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नवंबर 1688 में वह आनंदपुर साहिब में आकर रहने लगे, मगर बिलासपुर की रानी के आग्रह पर गुरु गोबिंद सिंह जी चक नानकी में रहने लगे थे।
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वर्ष 1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने धर्म की रक्षा हेतु खालसा पंथ की स्थापना की थी, गुरु जी के एक बुलावे पर हजारों लाखों लोगों ने सिक्ख पंथ को अपनाकर धर्म की खातिर लड़ने का निर्णय लिया था।
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गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिक्ख धर्म अपनाने के लिए ‘द फाइव के’ यानि की पांच मूल सिंद्धात बताए थे। उन्होंने कहा था कि जो कोई गुरु सिक्ख बनना चाहता है उसे केश, कंघा, कड़ा, सूती कच्छैहरा (यानि कच्छा जो घुटनों तक हो) व किरपान धारण करनी पड़ेगी।
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गुरु जी ने धर्म के मार्ग पर चलते हुए अपने पुरे परिवार को न्योछावर कर दिया था। उनके दो बेटों की मौत चमकौर की लड़ाई के दौरान हुई थी, जबकि उनके दो छोटे साहिबजादों को मुगल शासक द्वारा जिन्दा दीवार में चुनवाकर मौत के उतारा गया था।
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मुगलों में बहादुर शाह ऐसे पहले सम्राट थे जिनकी गुरु गोबिंद सिंह से मित्रता थी। इन्होंने गुरु गोबिंद सिंह जी को भारत का संत नाम की उपाधि दी थी, लेकिन कुछ समय बाद लोगों के भड़काने पर बहादुर शाह ने गुरु गोबिंद सिंह पर हमला करवा दिया था।
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गुरु गोबिंद सिंह जी की मृत्यु अक्टूबर 7 को वर्ष 1708 में हुई थी।