हमारे समाज में को-एजुकेशन यानि लड़के-लड़कियों के साथ पढ़ने को लेकर लंबे समय से बहस जारी है। लेकिन इस मुद्दे पर समाज से अलग आपकी व्यक्तिगत क्या राय है। क्या इस पर प्रतिबंध लगना चाहिए या नहीं। अगर कोई मुझसे पूछे, तो मेरी राय में को-एजुकेशन बच्चों के या छात्र-छात्राओं के संपूर्ण विकास का सबसे उपयुक्त प्लेटफॉर्म है। जहां वें न केवल शिक्षा ग्रहण करते हैं, बल्कि उनमें नैतिक और चारित्रिक विकास का भी बेहतर मौका मिलता है। ऐसे बच्चे समाज में हर जगह अपने आत्मबल के सहारे हर माहौल में सभी परिस्थितियों से मुकाबला करने में सक्षम होते हैं। उनमें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का साहस और नैतिक बल पर्याप्त मात्रा में होता है। ऐसे बच्चे जो लड़कियों के साथ अध्ययन करते हैं, उनमें अपने अभिव्यक्ति को सबके सामने व्यक्त करने की पूरी क्षमता होती है। ऐसे छात्र या छात्रा का दुनिया को देखने का नजरिया भी अलग होता है, वो हर जगह हर माहौल में सहजता से सामना करने के सक्षम होते हैं। लेकिन कुछ माता पिता का इस विषय को सोचने का नजरिया ही अलग होता है। उन्हें लगता है कि लड़का या लड़की एक साथ न पढ़ने से उनके बच्चे का संपूर्ण विकास हो सकता है या विपरीत लिंगी से दूर रख कर बुराइयों से बचा जा सकता है। उनकी ये सोच सरासर गलत है। विपरीत लिंगियों से दूरी बना कर ऐसा नहीं है कि सारी बुराइयों का जड़ से खत्म किया जा सकता है, बल्कि ऐसा करने से बुराई का पहला कदम भी नहीं रोका जा सकता है। आपका पहला कदम तो अपोजिट सेक्स के बारे में अपने बच्चे को बता कर उन्हें समाज में बराबरी का अवसर देने की सोच विकसित करनी चाहिए। जिससे उनके कोमल हृदय में किसी तरह की दुर्भावना का विकास ना हो सके। ये समझ से परे हैं कि क्यों माता-पिता अपने अपने बेटे को लड़कियों से और बेटियों को लड़को से स्कूल में दूरी बना कर रखने के लिए कहते हैं, जबकि हर वक्त अपने बच्चों पर लगातार नजर रखना संभव नहीं है। बच्चों को घर पर कैद रख कर आप किस प्रकार शिक्षा दे सकते हैं। जबकि लड़के लड़कियों को एक ही छत के नीचे समान रूप से सभी गतिविधियों के अवसर प्राप्त होते हैं। जहां उन्हें य़थार्थवादी वातावरण मिलता है। यहां तक स्कूल पर होने वाली सभी गतिविधियों के अलावा खेलकूद स्पर्धा आदि कार्यक्रम में सभी बच्चे समान रूप पर हिस्सा लेते हैं।
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इससे उनका मानसिक और शारिरिक विकास होता है। इससे लड़कियों को आगे बढ़ने का मौका मिलता है। इसके अलावा एक दूसरे की भावनाओं को समझते हुए लड़के लड़कीयों के बीच के संबंध मजबूत होते है। आज के समय के इस बदलते माहौल में लड़कियों ने कई क्षेत्र में महारतें हांसिल कर ली है। घर के काम से लेकर देश की बागड़ोर संभालने तक लड़कियां किसी भी काम में पीछे नही है। फिर भी दोनों के बीच में इतनी असमानताएं क्यों हैं। इसके लिए लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी।
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इस आधुनिक समाज में आज भी लड़के लड़कियों के बीच दूरियां बनाकर रखी जाती है। केरल Pallikoodam हाई स्कूल में लिंग सबंधी भेदभाव के चलते दोनो के बीच 1 मीटर के फांसले की दूरियां बनाई गई है। समाज का बुद्धिजीवी वर्ग इसके बिल्कुल खिलाफ है। जहां लड़के एवं लड़कियां खुले रूप में बात करके अपने विचारों को एक दूसरे को बता सकते है, वहां पर अच्छे वातारण का विकास हो सकता है। इससे दोनों में एक दूसरे के प्रति आदर की भावना भी बनती है और वह एक अच्छे दोस्त बनते हैं। पर आज लोग इतने साक्षर होने के बाद भी लिंग भेद के बीच इतना अतंर क्यों कर रहे हैं। क्यों दोनो के बीच इस तरह की खाई बना रहें हैं। आज के समय में किसी भी क्षेत्र में लड़कियां पीछे नहीं हैं। लड़कियां सभी काम लड़को के साथ समान रूप से जबकि लड़को से ज्यादा ही करके दिखा रहीं हैं।
आज के समय प्रशासन ही लिंग भेद में अंतर बना रहा है। जबकि सहशिक्षा दोनो का संम्पूर्ण विकास करता है। जिससे दोनों में हर क्षेत्र में काम करने की क्षमता बढ़ती है। सहशिक्षा के द्वारा ही छात्र नैतिक मुल्यों अपनाते हैं। एक दूसरे से आगे बढ़ने की प्रतिस्पर्धा की भावना आने से स्टूडेंट्स अपने जीवन में अधिक सफल रहते हैं। सहशिक्षा, लड़का हो या लड़की दोनों के सर्वांगीण विकास के लिए बहुत जरूरी है। इसलिए हर माता पिता को अपनी मानसिकता में बदलाव लाकर और सहशिक्षा की गुणवत्ता को समझकर बच्चों को आगे बढ़ने के समान अवसर प्रदान करने चाहिए। अपने बच्चों को आगे बढ़ने के लिए अधिक से अधिक अवसर दिए जाने चाहिए। शिक्षा आपको शिक्षित होने का एहसास कराती है। ना कि यह आपको लिंग भेद पक्षपात और असमानता के अधेंरे में ढकेलती है। क्या हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को इस प्रकार के लिए बढ़ावा देना चाहिए। अगर इस पीढ़ी को स्कूल भेजना शुरू नहीं करते हैं, तो आने वाली पीढ़ी से किस प्रकार के समाज सुधार की बात कर सकते हैं। क्या ऐसे समाज में बदलाव लाया जा सकता है।