भारत की सिंगल मदर्स को हमारा सलाम, संघर्षों से जूझते हुए करती हैं बच्चों का लालन-पालन

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किसी ने क्या खूब कहा है-

हालात बुरे थे मगर अमीर बनाकर रखती थी

हम गरीब थे, ये बात बस हमारी ‘माँ ‘जानती थी

12 मई को दुनिया भर में मनाया जाने वाला मदर्स डे संपूर्ण मातृशक्ति को समर्पित करने वाला दिन है। मां एक ऐसी छाया है जिस पर रहकर हमारी मुसीबते दूर हो जाती है। मां का आचंल बच्चों के लिये निस्वार्थ भावना के साथ उनकी सेवा करके उन्हें नई जिंदगी देने कि कोशिश करता है। लेकिन आज हम उन एकल माताओं के बारें में बात कर रहे है जो अकेले रहकर समाज कि कड़ी आलोचनाएं सुनकर हर किसी के संघर्ष को सहते हुये अपने बच्चों की परवरिश कर रही हैं।

हमारे भारत देश में एकल माताओं (विधवा, तलाक शुदा) का अकेले रहकर जीवनयापन करना काफी चुनौतियों से भरा होता है क्योंकि उस दौरान साथ देने वाले कम और रास्ते में बाधा डालने वाले लोग ज्यादा देखने को मिलते है। उन्हें किसी भी तरह से बोलने का मौका नहीं छोड़ते। इन लोगों से काफी परेशान होने के बाद एक समय ऐसा भी आता है कि जब महिलाओं को समझने के लिये मजबूर होना पड़ता है कि अकेली महिलाओं के प्रति लोगों की मानसिकता कभी नहीं बदल सकती। इसलिए उन्हें अपने जीवन में आगे बढ़ते रहने के लिए आत्मविश्वास और इच्छा शक्ति का होना काफी जरूरी है।

एकल मां को बच्चे को पालना काफी कठिन काम होता है क्योकि वो बाहरी संघर्ष का सामना करने के साथ बच्चे के भविष्य को सही तरीके से संवारना भी जरूरी होता है क्योकि आज का समय

स्मार्ट फोन और इंटरनेट का है जिसमें बच्चे इसके संपर्क में रहकर दिशाहीन भी हो सकते है। क्योकि माता-पिता कि अनुपस्थित में रहकर बच्चे गलत रास्ता अपनाने लगते है। इसलिये सिंगल मां की बहुत बड़ी जिम्मेदारी हो जाती है कि बच्चों को सही दिशा में किस तरह से लाया जाये।

यहां हम बता रहे है एक सिंगल मां को किस तरह की समस्याओं को प्रत्येक दिन फेस करना पड़ता है।

घर की पूरी जिम्मेदारी उठाना

घर की पूरी जिम्मेदारी उठाना

एकल मां को कई तरह के परेशानियों को फेस करना होता है क्योकि घर चलाने के लिये कमाने का एकमात्र साधन वो अकेली खुद होती है। बच्चों की हर छोटी बड़ी जरूरतो को पूरा करने के लिए उन्हे नौकरी करने के साथ बच्चों को लिये अलग से समय निकालना जरूरी होता है। उस दौरान उन्हे 24×7 काम करना होता है । जैसे बच्चों को ट्यूशन ले जाना, किराने की खरीदारी करना, बच्चे बीमार हो जाये तो चेक-अप के लिए डॉक्टर के पास ले जाना, बच्चों को डांस आदि जैसी अतिरिक्त जैसे सभी कार्यों का प्रबंधन करना पड़ता है। उस दौरान उसका कोई ऐसा साथी नहीं होता जिसके साथ वे अपने कार्यों को साझा कर सकें।जिससे वो काफी थक जाती है।

अकेले रहकर हर स्थिति का सामना करना

अकेले रहकर हर स्थिति का सामना करना

भारत जैसे पितृसत्तात्मक देश मे आज भी महिलाओं के साथ उसी तरह का व्यव्हार किया जाता है जहां पति सिर्फ उसे चारदिवारी कीे अंदर की वस्तु समझ कर उसका शारीरिक शोषण करते आये है। लेकिन इस देश में जब एकल मां अपने बच्चे के साथ रहती है तो लोग उसकी मदद करने के बजाये उसके साथ  फ्लर्ट करने की कोशिश करते हैं। उसे हर दम शारीरिक मानसिक रूप से आघात पहुचाने की कोशिश करते है। समाज के द्वारा उस महिला को हमेशा शादी के असफल होने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। उस दौरान एक माँ को कमजोर नहीं बनना चाहिए बल्कि, अपनी ताकत को पहचानना चाहिए। हर मुकाबले का सही तरीके से जबाब देते हुये आगे बढ़ना चाहिये। और मुस्कुराते हुये आने वाली हर चुनौतियों का मुकाबला करना चाहिए।

परेशानी और प्रेशर से भरी जिदंगी जीना

परेशानी और प्रेशर से भरी जिदंगी जीना

एकल मदर अकेले होने के कारण हमेशा घर की उलझनों में ही फसी रह जाती  है। घर बाहर दोनों जगहों के काम के बाद वो बच्चों की जरूरतो को पूरा करने में लग जाती है जिससे उसके पास अपने लिये समय ही नही बचता। बच्चों का केयर सही तरीके से करने के बाद भी समाज उसे बेचारी की नजरो से देखकर उसकों बार बार एहसास भी कराने की कोशिश करता है जिससे उनके शब्दों को सुन उसके जीवन में और अधिक प्रेशर पड़ने लगता है और वह और अधिक मेहनत करती है जिससे बच्चों को किसी भी प्रकार की कमी ना हो।

पुनर्विवाह का सामाजिक दबाव

पुनर्विवाह का सामाजिक दबाव

एकल महिलाओं पर समाज का दबाब हमेशा दोबारा शादी करने के लिये ज्यादा होता है। क्योकि वो लोग जटिल पारिवारिक बंधन को नहीं समझते हैं क्योकि जरूरी नही है कि दूसरी शादी भी सफल हो। इसलिये दूसरी शादी के बारें में सोचना उनके लिये और बच्चों के खतरनाक भी साबित हो सकता है।

अपने बच्चों के प्रति जवाबदेह होना

अपने बच्चों के प्रति जवाबदेह होना

एकल मां के बच्चों की जरूरते पूरी ना होने  पर वो दूसरे बच्चों के रहन सहन से अपनी तुलना करने लगते है और मां को उसे पूरा करने के लिये तरह तरह के सवाल करते है। उस दौरान दूसरे के परिवार में सभी लोगो को देखकर वो निश्चित रूप से जानना चाहते हैं कि उनके पिता कौन हैं हमारे परिवार के लोग हमसे दूर क्यो है। क्योकि वो महसूस करते है कि कई चीजें उनके दोस्तों के जीवन में बहुत भिन्न हैं, इसलिए वे अपनी मां से पूछताछ करना शुरू कर देते हैं। उस दौरान एकल मां को उन कठिन सवालों से निपटना पड़ता है।

रोजमर्रा की परिस्थितियों के साथ लगातार परिश्रम करना

रोजमर्रा की परिस्थितियों के साथ लगातार परिश्रम करना

एक सिगंल महिला को मां व बाप बनकर बच्चे को पालने के लिये अहम भूमिका निभानी पड़ती है। कभी कभी बच्चों की डिमांड ज्यादा बड़ जाती है तो उस दौरान उन्हें पूरा करने के लिये काफी कॉम्प्रोमाइज्ड भी करना पड़ता है। बच्चों की हर आवश्कताओं को पूरा करने के लिये वो हमेशा चितित रहती है क्योकि बच्चे नदानी में मां की जिम्मेदारियों और परेशानियों को नही समझ पाते कि वो किस तरह से मेहनत करके उनकी देखभाल कर रही है। और उसे जीवन की हर लड़ाई को अकेले ही लड़ना पड़ता है।

चाइल्ड केयर पर भरोसा ना करना

चाइल्ड केयर पर भरोसा ना करना

सिंगल मदर हमेशा बच्चों को पालने के साथ साथ उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहती हैं क्योकि बाहर काम करने के दौरान बच्चों को किसके भरोसे छोड़कर जाये यह उनके लिये काफी परेशानी का कारण बना रहता है। काम करने के दौरान उनका पूरा मन बच्चे की तरफ ही लगा रहता है कि वह सही तरीके से काम कर रहा होगा या नही। खाना खाया है या नही। इसके लिये किसी अच्छे केयरटेकर की तलाश में लगी रहती हैष जो उसके बच्चों की देखभाल अच्छी तरीके से कर सके।

इस बारें में हम सभी को एक बार जरूर सोचना चाहिये कि एक अकेली मां किस तरह से समाज की बुराइयों को झेलते हुये बच्चे के लिये आर्थिक मानसिक शाररीरिक रूप से परेशान होकर भी बच्चे की हर जरूरतो को पूरा करते हुये पालती है। जिसके बारें में समाज के लोग उसकी भावनाओं की कद्र ना करते हुये उसे दबाने की कोशिस करते है आज हमे ऐसी मांताओं को सलाम करना चाहिये। जो अकेली होकर जीवन की हर कठिन चुनौतियों को स्वीकार करते हुये अपने बच्चे का भविष्य संवारकर नई जिंदगी देती है।

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