श्रावण मास की पूर्णमासी के दिन मनाया जाने वाला यह पर्व भाई-बहन के प्यार का प्रतीक माना जाता है। जिसमें एक मामूली सा कच्चा धागा बहन- भाई के रिश्ते को विश्वास, समर्पण के साथ एक दूसरे को जोड़े रखता है। जब बहन आपने भाई की कलाई पर राखी स्वरूप वो धागा बंधती है, तो भाई अपनी बहन की रक्षा जीवन भर करने के लिए हमेशा तैयार खड़ा रहता है।
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पर क्या आप जानते हैं कि इस धागे की डोर से बने इस पर्व की शुरूआत कहां से हुई। वैसे तो पौराणिक कथाओं के अनुसार यह पर्व कई हजार साल वर्ष पुराना है। जिसके साक्ष्य हमारे इतिहास के पन्नों में दर्ज है। जिसमें इसकी नींव उन बहनों ने रखी थी जो उनकी अपनी सगी बहने नहीं थी भले ही उन बहनों ने अपने सरंक्षण के लिए इसकी नींव रखी हो पर तब से आज तक यह त्योहार अजर और अमर हो चुका है। जिसकी मान्यता आज भी पूरी तरह से बरकरार है। आज हम आपको इस बंधन से जुड़े वो सारे तथ्यों को बता रहें हैं। जिससे इस रक्षाबंधन की शुरूआत हुई…
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देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षासूत्र बांध कर बनाया था भाई
स्कन्द पुराणों के अनुसार बताया जाता है कि राजा बलि ने स्वर्ग को पाने की इच्छा से घोर तपस्या और बड़ा यज्ञ किया। उसकी इस तपस्या से देवराज इंद्र काफी घबरा गये और वह इस समस्या का समाधान पाने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचकर प्रार्थना करने लगे। तब भगवान विष्णु वामन (ब्राह्मण) का वेष बनाकर राजा बलि से भीख मांगने पहुंच गए। भिक्षा में भगवान ने राजा बलि से तीन पग जमीन मांग ली। जिस पर बलि नें हामी भी भर दी। गुरु शुक्राचार्य इस बात को भांप गये और बलि से मना करने लगे, पर बलि ने अपने दिये संकल्प को नहीं छोड़ा और तीन पग भूमि दान कर दी।
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वामन भगवान ने दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया अंत में एक पग के लिए राजा बलि ने अपना शीश आगे कर दिया। इसके बाद राजा बलि को रसातल में भेज दिया। पर अपनी भक्ति के बल पर बलि ने विष्णुजी से हर समय अपने पास ही रहने का वचन ले लिया। जिससे लक्ष्मी जी परेशान हो गईं और अपने पति को पाने की इच्छा से वो सीधे बलि के पास पहुंच गई और वहां पहुंचकर कच्चे धागे का रक्षासूत्र उन्होंने बलि की कलाई पर बांध दिया। संकल्प में उन्होंने बलि से विष्णुजी को वापस मांग लिया। तभी से इस भाई बहन के रिश्ते को मजबूत करने के लिए इस त्योहार को मनाया जाने लगा।
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इंद्राणी ने अपने पति की रक्षा के लिए बांध रक्षा सूत्र
रक्षाबंधन को लेकर दूसरी मान्यता यह भी है कि जब देवों और दानवों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था तब दानव की शक्ति देवों पर भारी पड़ रही थी। जिससे राजा इंद्र काफी घबरा रहे थे। अपने पति इंद्र की परेशानी को देखकर इंद्राणी भगवान की अराधना करने लगी। उनकी इस भक्ति से प्रसन्न हो भगवान काफी खुश हो गये। और उन्होंने इंद्राणी को मंत्रयुक्त धागा दिया। इस धागे को इंद्राणी ने अपने पति राजा इंद्र की कलाई में बांध दिया जिससे इंद्र को विजय प्राप्त हुई। तब से यह रक्षासूत्र हर बहने अपने भाई की सुरक्षा के लिए बांधती चली आ रही है। जो आज रक्षाबंधन के नाम से जाना जाने लगा है।