पुरूष प्रधान इस समाज में आज भी लोगों की मानसिकता वही है जो कई साल पहले थी। भले ही हमारा देश कितनी ही प्रगति कर रहा हो, पर आज भी यहां पर बेटियों को अभिशाप समझ, उसकी इच्छाओं को चार दिवारी के अंदर ही दफन कर दिया जाता है या पैदा होते ही उसकी चीख बंद कर दी जाती है। जो देश आज प्रगति के नाम के ढिंढोरा पीट रहा है, उसी के समाज के हाथों ही देश की नींव को कमजोर हो रही हो। आज हमारे देश में रोज न जाने कितनी ही बेटियां किसी दरिंदे का शिकार हो तड़प-तड़पकर मौत के आंचल में समा रही है। तेजी से बढ़ते बालात्कार और भ्रूण हत्या जैसे मौत के द्वार उसके लिए हमेशा खुले ही रहते है। समाज की नजर में लड़किया केवल एक अभिशाप के नाम से जानी जाती रही है। पर समाज यह नहीं जानता कि आज महिलाओं के दम पर ही देश का संपूर्ण विकास टिका है।
इसी बात को एहसास करा रहा है एक ऐसा गांव जो आज पुरूषों के नाम से नहीं बल्कि बेटियों को नाम से जाना जाता है। जो समाज के लिए प्रगति की एक नई पहल है।
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“तिरिंग” गांव की पहचान-
“तिरिंग” आदिवासियों का सबसे पिछड़ा गांव, जहां पर सरकार की नजरें भले ही विकास के क्षेत्र पर न गई हो, पर वहां के लोगों नें एक अद्भुत मिसाल देकर पूरे देश व समाज को सबसे बड़ा जवाब दिया है। “बेटी पढ़ाओं, बेटी बचाओं” अभियान, जिसे पूरे गांव ने एक होकर आगे बढ़ाया। इसे अभियान के बाद आज यह गांव यहां की बेटियों की पहचान बनकर उभरा है।
बेटियों को ऊंचा दर्जा देने वाला झारखंड का तिरिंग गांव हमारे देश का पहला गांव है, जहां पर हर घर की पहचान अब बेटियों के नाम से ही होती है। इस गांव के मिट्टी वाले घरों पर बेटी के साथ घर की महिलाओं के नाम की नेम प्लेट लगायी गई है। जो उस गांव की पहचान बन गयी है।
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प्लेट का रंग-
आदिवासियों की परंपरा के अनुसार भले ही घरों की दीवारें अलग-अलग रंगों से रंगी हो, पर घरों पर लगाई जाने वाली नेम प्लेट की पट्टी पीले रंग की और उस पर लड़कियों के नाम का रंग नीला चुना गया है। रंगों के चयन के पीछे छिपा तथ्य यह है कि पीला रंग ऊर्जा, प्रकाश और आशावाद का प्रतीक माना गया है, तो वही नीला रंग बेटियों की उड़ान के साथ आसमान को छूने का हौसला देने वाला है।
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‘पहले पढ़ाई, फिर विदाई’-
इस गांव के लोगों ने एक होकर लड़कियों को ऊंचाइयों तक पहुंचाने का जिम्मा लिया है। उनके विकास की हर जरूरतों को लाने के लिए अभियान चलाया है। इसी अभियान को चलाने के लिए।सभी सरकारी स्कूलों में स्लोगन दिया गया ‘पहले पढ़ाई, फिर विदाई’ जो पूरे देश में एक चर्चा का विषय बना।
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जन्मदर एवं साक्षरता-
जहां एक ओर लोग बेटी को अभिशाप समझ उसकी हत्या कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर यह गांव बेटियों को बचाने की एक नई पहल कर रहा है। तिरिंग गांव जहां के आकड़े भी बता रहे हैं कि 2011 की जनगणना के अनुसार तिरिंग गांव में एक हज़ार लड़कों पर 768 बच्चियां ने जन्म लिया था और महिलाओं की साक्षरता दर पर नजर डाले तो जहां इनकी साक्षरता दर 50 फ़ीसदी से भी कम थी, वहीं अब पूरे जिले में यह बढ़कर 67 फ़ीसदी तक हो गई है।
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तिरिंग में शुरू हुई एक नई बेहतर पहल-
तिरिंग गांव में शुरू हुई ‘मेरी बेटी मेरी पहचान’ नमक अभियान की नई पहल पूरे देश में जगरुकता लाने की एक बेहतर पहल है। इस अभियान से समाज की हर बेटियों का आत्मबल बढ़ेगा, जिसका लाभ आनेवाले दिनों में समाज को निश्चित रूप से ही मिलेगा।