हिन्दूओं की पौराणिक कथाओं के अनुसार माना गया है कि सावन मास की शुरूआत में सभी लोक के देवता अपना कार्यभार भगवान भोलेनाथ के हाथों में सौंपकर पाताल लोक आराम करने के लिए निकल जाते है। इस दौरान भगवान भोलेनाथ अपनी जीवनसंगनी पार्वती के साथ पृथ्वी लोक पर यहां के लोगों के दुःख-दर्द को हरण करते है। वह लोगों की श्रृद्धा को देख उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते है। इसलिए कहा जाता है कि इस समय पृथ्वीवासियों को पूरी तनमयता के साथ शुद्ध होकर भगवान का पूजन करना चाहिए। सभी को घरों में साफ सफाई करने के साथ ही आपसी कलह और मांस मंदिरा के सेवन से दूर रहना चाहिए।
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हरियाली का महिना-
भगवान भोले नाथ को प्रकृति का देवता माना जाता है तभी तो इस माह में हरियाली भी पूरी तरह से झूमकर भगवान भोलेनाथ का स्वागत करने के लिए हमेशा तैयार खड़ी रहती है। यह चारों ओर के वातावरण के शुद्ध कर लोगों को सुख शांति का संदेश देती है।
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निस्वार्थ और तप का महिना-
हमारी पौराणिक मान्यताओं में कहा जाता है कि सावन के महिने में भगवान शंकर की उपासना के लिए देवी पार्वती ने कई कठोर तप किये थे। देवी सती ने पिता दक्ष के घर में अपने शरीर को त्यागने से पहले ही महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने के लिए इसी महीने कठोर तपस्या की थी।
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इसके बाद दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के रूप में पर्वत के राजा हिमाचल और रानी मैनावती के घर में एक बेटी के रूप में जन्म लिया और फिर शंकर को पाने की इच्छा से पार्वती ने इन्हीं सावन के महीने में कई दिनों तक निराहार रह कर कठोर तप और व्रत किया। जिससे प्रसन्न होकर महादेव नें उन्हें अपने जीवन में आने की अनुमति दी। इन्हीं कारणों से सावन का महिना उत्तम माना जाता है।
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बेलपत्र और समी की पत्ती से भोलेनाथ को खुश करने का महिना
हर भक्त अपने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी मनपसंद चीजों को भेंट करते हैं। जिसमें बेलपत्र और सेमपत्र को बहुत ही शुभ माना गया है। पौराणिक धारणाओं के अनुसार जब 89 हजार ऋषियों मुनियों ने भोलेनाथ को खुश करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से जानना चाही तो उन्होंने कहा कि भोले नाथ को सौ नीलकमल चढ़ाने से वो जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं, और एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र होता है। एक हजार बेलपत्र के बराबर एक समी की पत्ती को अर्पित करने से शिव की पूजन का लाभ प्राप्त होता है। इसलिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए श्रृद्धालु इन बेलपत्र और समी की पत्तियों का उपयोग करते है।
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प्रेम और विश्वास का प्रतीक-
सावन मास की शुरूआत होते ही श्रृद्धालु अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए पैदल चलकर कावंड़ में गंगाजल लाकर भगवन शिव को चढ़ाने के लिए उनके दरबार के लिए निकल पड़ते है। कावड़ लाने के लिए शिव भक्त कई खतरनाक जगहों को पार करते हुए जाते हैं। जो उनके विश्वास और आपसी प्रेम को दर्शाता है।