हमेशा से ही भारतीय संस्कृति में सादा जीवन जीने पर बल दिया गया है। मगर समय के साथ साथ लोगों ने अपने व्यक्तित्व को बदल दिया। लोग जीवन की व सादगी को भुलाकर चमक धमक और दिखावे में उलझ गए है। जिसके चलते अधिकतर लोग अपने आप में ही कंफ्यूज रहते है। हालांकि ये सब वह नही चाहते और इससे छुटकारा पाने के लिए तरह तरह के कार्य करते है जैसे मैडीटेशन, योगा व अन्य कार्य। मगर इस शांति को पाने का एक तरीका यह भी है कि आप दुनिया के दिखावे के आचरण को त्याग कर सादगी को अपनाए। महिलाओं को भी सादा जीवन जीने पर बल देना चाहिए। अधिकतर महिलाएं सोचती है कि चमक धमक ही आपकी सुंदरता को निखारती है तो आप गलत है, वह खूबसूरती महज दिखावा होती है। सादगी ही आपको असली खूबसूरती देती है।
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सादगी का मतलब त्याग नही
कुछ लोग मानते है कि सादगी का मतलब त्याग होता है। अगर आप भी ऐसा ही सोचते है तो यकीन मानिए ऐसा बिल्कुल भी नही है। साथ ही इसका लेना देना अमीरी गरीबी से भी नही है क्योंकि अगर ऐसा होता तो सारी टेंशनस मध्यम वर्ग के लोगों को ही होती और अमीर और गरीब लोग अच्छा जीवन जीते है। जो लोग अधिक अमीर है उनके पास हर चीज के इतने विकल्प है कि उन्हें रोजाना उनका चयन करना पड़ता है, वह तब परेशान है दूसरी और गरीब के पास चयन के लिए विकल्प ही नही है तो वह भी परेशान है इसलिए हर किसी को खुद के लिए सीमित विकल्प ही रखें ताकि चीजों का चयन करने में आपकी कम ऊर्जा खर्च हो। इससे आपके पैसे की भी बचत होती जिससे आपको आर्थिक तौर से होने वाली टेंशन भी नही होगी।
सुविधा न बने असुविधा
अगर आप सादा जीवन जीने का सोच लेते है तो इससे आपके जीवन में कई सुधार आएंगे। अगर आप सादा जीवन जीएंगे तो आपको समझ में आएगा कि आपके लिए कौन सी चीज सही मायने में महत्वपूर्ण है। ऐसा होने पर आप सिर्फ उन्हीं चीजो की ख्वाहिश करेंगे जो आपके जीवन के लिए सच में जरुरी है।
सोच बदलें-संसाधन नहीं
जब आप अपने जीवन में सादगी को पूरी तरह से अपना लेते है तो आपकी बहुत सी दुविधाएं खत्म हो जाती है। दरअसल दिखावे की प्रवृति हमारें अन्दर संसाधनो की इच्छा उजागर करती है, लेकिन अगर जब हम सादा जीवन जीने का मन बना लेते है तो, हमारे दैनिक जीवक के संसाधन बहुत कम हो जाते है। हम केवल उन्हीं चीजों का चयन करते है जिनकी हमें अधिक जरुरत होती है।
सीखने की प्रक्रिया
अधिकतर लोग भौतिकवादी सोच के शिकार है जिसके चलते वह कितना भी कमा ले या कुछ भी हासिल कर लें, उनकी इच्छाओं का कोई अंत नही है। सच तो यह है कि इंसान कितना भी सफल क्यों न हो जाए उसके सामने उससे ज्यादा लोगों की मिसाल तो होती ही है। जिसके चलते इंसान के संसाधनो की गिनती कम नही होती वह लगातार अपनी जीवनशैली में परिवर्तन करता है। यही धीरे धीरे उसकी चिंताओं का विषय बनने लगती है। इससे उलट अगर व्यक्ति सादा जीवन जीता है तो उसकी इच्छाएं कम होगी और उसका मन शांत रहेगा।