आईवीएफ तकनीक से अब हर घर में गुंजेगी किलकारियां

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आपने अक्सर देखा होगा जिनकी नई शादी हुई होती है अक्सर परिवार वाले परिवार वाले नए जोड़े से जल्द से जल्द खुशखबरी की उम्मीद करने लगते हैं। वैसे उनका यह उम्मीद करना गलत भी नहीं है क्योंकि हर कोई चाहता है कि उनके घर के आंगन में जल्द से जल्द बच्चे की किलकारियां गुंजे। लेकिन कहते हैं ना कि ये सब तो भगवान की देन है, और भगवान की नेमत हर किसी पर बरसे यह जरूरी भी नहीं। आपको जानकर शायद हैरानी होगी कि दूनिया भर में करीब 15 प्रतिशत से ज्यादा दंपतियों में गर्भधारण करने को लेकर अड़चने आती है। गर्भधारण ना कर पाने को लेकर परेशान होना दंपत्तियों के लिए स्वभाविक है। ऐसे में अगर आप भी बच्चे ना होने की परेशानी से गुजर रहे हैं, तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं आईवीएफ एंव इनफर्टिलिटी तकनीक के बारे में, जो आज के वक्त में नि:स्तान दंपत्तियों के लिए एक वरदान साबित हो रही है।

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आपको जानकर हैरानी होगी कि एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि 1.9 करोड़ जोड़े ऐसे थे जो मां- बाप बनने की स्थिति में नहीं थे। लेकिन फिर आईवीएफ की मदद के चलते आज उनके घरों में बच्चों की किलकारियां गुंज रही है। आपको बता दें कि अब तक ढाई करोड़ लोग इस तकनीक का फायदा उठा चुके हैं। जिससे ये साफ हो गया है कि आईवीएफ से कोई खतरा नहीं है। इस तकनीक के बारे में आपको बता दें कि बांझपन के इलाज को करने के लिए आईवीएफ में शुंक्राणु की मदद से बीज को फलित कर गर्भाशय में रखा जाता है। जिससे एक हेल्थी बच्चा आपके यहां जन्म लें। लेकिन इस दौरान कई बातों का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी होता है। जो गर्भावस्था को प्रभावित करती हैं। आज हम आपको उसके कारण बताने जा रहे हैं।

बांझपन की समस्या किसे होती है
बच्चे ना होने के लिए सिर्फ पुरूष या महिला को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। बताया जाता है की अगर 40 प्रतिशत मामले में पुरूषों को कोई समस्या है तो उतने ही मामले में महिलाएं भी किसी समस्या से ग्रस्त हो सकती है। वहीं देखा गया है कि 10 प्रतिशत मामलों में महिला और पुरूष दोनों को ही यह समस्या हो सकती है। बाकी बचे 10 फीसदी जोड़े, उनमे बांझपन की कोई विशेष वजह नहीं दिखाई देती है। सभी को अच्छे से पता है कि हर दंपत्ति की अपनी विशेषताएं और गुण होते हैं। जिनके आधार पर ये प्रक्रिया तय होती है। बताया जाता है की पुरुषों में पाया जाने वाला बांझपन, एंड्रोमेट्रियोसिस,  पेल्विक इंफ्लेमेट्री डिसीज, पीसीओएस औऱ अंडसशय में बीज तैयार करने की क्षमता कम होना ये कुछ ऐसे सामान्य लक्षण हैं। जिनकी वजह से आईवीएफ तकनीक का उपयोग किया जाता है।

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इसका उपचार
दूनिया में कोई ऐसी चीज नहीं है जिसका कोई इलाज नहीं है। वैसे ही आपको इस समस्या से घबराने की जरूरत भी बिल्कूल नहीं है। आपकी इस इस समस्‍या को भी कई तरीकों से ठीक किया जा सकता है। इसके लिए या तो आप कुछ महीनों तक रुककर परिस्थितीयों को सुधारने की प्रतिक्षा करें या फिर आधुनिक तकनीक से इसका इलाज करवाएं। आपको बता दें कि इस तकनीक से गर्भधारण करने की प्रक्रिया में आपको कई चरणों से गुजरना पड़ता है। जैसे हार्मोनल ऐसेज, एंड़ोस्कोपी, फॉलिक्युलर मॉनिटरींग, ओवरियन स्टिम्युलेशन और आईयुआई इत्यादि।
हर 5वें मरीज को होती है जरूरत

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सर्वे में चौंकाने वाली बात जो सामने आई है वह यह है कि बांझपन की समस्या का इलाज कराने वाले लोगों में से हर 5वें इसांन को आईवीएफ तकनीक की मदद लेने की जरूरत पड़ रही है। वहीं बाकी लोगों में बुनियादी तरिकों से किया गया इलाज ही सफल हो रहा है। बताया जा रहा है की जो दपंत्ति आईवीएफ का सहारा ले रहे हैं उन पर किए गए उपचारों में भी कई प्रकार की विभिन्नता होती है।

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आईवीएफ में क्या होता है
लाखों करोड़ों लोगों के लिए वरदान साबित हुई इस तकनीक के बारे में बता दें कि इस तकनीक के शुरुआती दौर में महिला को गोनैडोट्रोफिंस के इंजेक्शंस (प्रजननक्षम हार्मोन्स) दिए जाते है। जो दो हफ्तों तक (ओवरियन स्टिम्युलेशन) के लिए होते हैं।  इसके बाद जनरल ऐनेस्थेशिया देकर उसाईट पिकअप नामक एक प्रक्रिया की जाती है, जिसमें अंडाणु को दोबारा पाने के लिए अल्ट्रासाउंड मशीन का इस्तेमाल किया जाता है।  इनक्युबेटर में बीज को सुरक्षित तरीके से रखने के बाद शुक्राणु और बीज को एक साथ लाने के लिए योग्य विधि निश्चित की जाती है। आपको बता दें कि यह सब प्रक्रिया आईवीएफ तकनीक से मुमकिन हो पाती है, जिसमें हर बीज के लिए एक लाख शुक्राणु रखे जाते हैं, या फिर इंट्रा सायटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन (आईसीएसआई) इस तरीके में हर बीज के साथ एक शुक्राणु को स्वतंत्र रूप से इंजेक्ट किया जाता है। एक बार यह विधि पूरी होने के बाद जो भ्रूण तैयार होते हैं, सके बाद उन्हें अलग-अलग समय के लिए इनक्युबेटर में रखा जाता है। इस वक्त के पूरे होने पर सबसे अच्छे गर्भ को चुनकर उसे गर्भाशय में दोबारा स्थापित किया जाता है।  इस प्रक्रिया को एम्ब्र्यो ट्रांस्फर कहते हैं।

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सफलता-असफलता
आपको बता दें कि इस तकनीक की सफलता और असफलता गर्भ को गर्भाशय में पुनः स्थापित करने के बाद गर्भाशय की अंदरूनी परत और गर्भ इन दोनों के पारस्परिक प्रभाव पर निर्भर करती है। अगर इन दोनों का ही संबंध अच्छा रहा तो गर्भधारणा की प्रक्रिया सफल मानी जाती है। नहीं तो ऐसा ना होने पर गर्भ सूख जाता है साथ ही गर्भधारण भी नहीं हो पाता है।

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सरोगेसी
बताया जाता है की जिन दंपतियों को शुक्राणु या फिर पिण्ड गर्भ के दान कि ज़रूरत होती है। उनमें से जननाणुओं का उपयोग कराने कि जो व्यक्तिगत क्षमता होती है उसके अनुसार ही उनकी मदद कि जा सकती है। सरोगसी के बारे में तो आप सभी अच्छे से जानते ही होंगे जिसमें एक दम्पति के लिए किसी अन्य महिला के गर्भाशय में भ्रुण स्थापित करना होता है। जी हां, इस तकनीक को वैसे अब तक एक आखिरी विकल्प कि तरह देखा जाता रहा है।  विशेष रूप से इसको उन महिलाओं के लिए किया जाता है जिनका गर्भाशय ठीक तरह से कार्य नहीं कर रहा होता, या फिर जिन महिलाओं के पास गर्भाशय ही नहीं होता है।

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