करवा चौथ: हाथों में पूजा की थाली… आई रात सुहागों वाली

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सुहागिनों के सुहाग का प्रतीक करवा चौथ पूरे देश भर में बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जानें वाला पर्व है। इस दिन हर सुहागिन महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र की कामना के लिए इस व्रत को करती है। इस बार यह दिन सुहागिन महिलाओं के लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाला है, क्योंकि इस बार करवा चौथ में पूरे सौ साल बाद ऐसा दुर्लभ संयोग बन रहा है, जिसमें महिलाओं को एक व्रत करने से सौ व्रत के बराबर का फल प्राप्त होगा।

100 साल बाद करवा चौथ का महासंयोग-
करवा चौथ का इस बार शुभ कार्तिक मास की रोहिणी नक्षत्र में बुधवार के दिन पड़ने वाला है। इस दिन चन्द्रमा अपने रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेगा। बुध अपनी कन्या राशि में रहेंगे। सबसे खास बात यह है कि बुधवार के दिन पड़ने वाला ये महासंयोग काफी फलदायी होगा क्योंकि गणेश चतुर्थी होने के साथ कृष्ण जी की रोहिणी नक्षत्र भी इसी दिन पर पड़ रही है। यह दिन दोनों ही देवताओं का सबसे अच्छा दिन माना जाता है।

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कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जानें वाला यह पर्व भारत के विभिन्न प्रांतों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, और राजस्थान में मुख्य रूप से मानाया जाता है।

करवा चौथ से संबंधित पौराणिक कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार करवा चौथ की शरूआत महाभारतकाल से हुई थी। इस कथा के अनुसार जब महान पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने के लिए नीलगिरी पर्वत की ओर जाते हैं। तब उनके चारों भाईयों पर गहरा संकट आ जाता है। अपने पतियों को परेशान देख द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण इस संकट से मुक्ति पाने का उपाय पूछती हैं। तब भगवान श्रीकृष्ण बताते है कि वह यदि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत करने से इन सभी परेशानियों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी ने पूरे विधि-विधान के साथ करवा चौथ के व्रत का पालन किया और निर्जला व्रत रख पूरे भक्ति भाव के साथ भगवान की पूजा की, जिससे उनके सारे दुख दूर हो गए। इस प्रकार से इस व्रत को करने से हर सुहागिन महिलाएं अपने पति के सारे कष्टों को हरने का प्रयास करती है ।

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प्यार और समर्पण का सच्चा प्रमाण-
अपने पति के लिए प्यार विश्वास और पूर्ण समर्पण के भाव को प्रकट करती महिलाएं इस दिन सुबह 4 बजे से उठकर तैयारी करने लगत जाती हैं। महिलाओं को इस दिन का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार रहता है। इस दिन महिलाएं काफी सुबह उठकर सरगी खाती हैं और उसके बाद पूरे दिन निर्जल रह कर व्रत का पालन करती है। शाम होंने पर वो चांद देखकर उसकी पूजा करने के करती हैं और अपने पति के हाथों से पानी पीकर अपने व्रत को पूर्ण करती हैं।

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करवा चौथ की पूजन सामग्री-
चंदन, हल्दी, कुमकुम, सिन्दूर, शहद, पुष्प, शक्कर, अगरबत्ती, शुद्ध घी, दही, कच्चा दूध, चावल, गंगाजल, मिठाई, मेंहदी, बिंदी, चूड़ी, कंघा, महावर, लाल चुनरी,बिछुआ, शक्कर का बूरा, रुई, दीपक, कपूर, पानी का लोटा, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, गेहूँ, लकड़ी का आसन, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, आठ पूरियों की छलनी, हलुआ, अठावरी, संकल्प लेने के लिए पैसे।

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इन सभी सामग्रियों को करवा चौथ के एक दिन पहले ही व्यवस्थित कर लें। व्रत वाले दिन काफी सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान करें, स्वच्छ साफ कपड़े पहन कर पूरा श्रृगांर करें। इस खास पर्व के दिन करवा की पूजा-आराधना करने के लिए गणेश जी के साथ शंकर-पार्वती की पूजा की जाती है, क्योंकि माता पार्वती ने अपने पति भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी और इसी तपस्या से उन्हें अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था, इसलिए इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करने का विधान है। इस दिन शाम के समय में चंद्रमा की पूजा के साथ संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का अंत करना चाहिए।

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करवा चौथ पूजन विधि-
करवा चौथ के व्रत को करने के लिए सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करें। इसके बाद संकल्प बोलकर करवा चौथ के व्रत की शुरूआत करें। इस दिन सभी महिलाओं को व्रत करने के लिए निर्जला रहना पड़ता है।

सुबह उठकर हर महिलाओं के अपने व्रत की शुरूआत इस मंत्र के साथ करना चाहिए।
‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’

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शाम के समय पूजा-अर्चना करने के लिए मां पार्वती के साथ शिवशकंर की प्रतिमा को लकड़ी के आसन पर रख कर विराजमान करें, इसके साथ ही श्रीगणेश की मूर्ति को भी रखें। इसके बाद मिट्टी के कर्वे पर रोली चंदन से स्वस्तिक बनाएं। मां पार्वती को फूल फल रोली लगाकर सारी सुहाग की सामग्रियां चढ़ाकर उनका श्रृंगार करें। इसके बाद भगवान की पूजा कर उनकी अराधना करें और एक नए करवे में पानी भरकर पूजा करें। याद रखें महिलाएं पूजा करने से पहले पूरा श्रृगांर करके ही पूजा करें और इस व्रत की कथा को सुने।

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शाम के समय में चांद की पूजा करने के बाद अपने पति के हाथों से पानी के साथ अन्न ग्रहण कर अपने व्रत को पूर्ण करें। इसके बाद घर पर सभी बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेकर अपने इस व्रत की समाप्ति करें।

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